UP News: राष्ट्रीय हरित अधिकरण ( एनजीटी ) ने शुक्रवार को उत्तर प्रदेश के कानपुर नगर, कानपुर देहात और फतेहपुर जिलों में निवासियों को प्रभावित करने वाले गंभीर जल प्रदूषण पर कड़ा संज्ञान लिया और अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान ( एम्स ), दिल्ली को हस्तक्षेप करने और क्रोमियम और पारा जैसे विषाक्त पदार्थों के संपर्क में आने से होने वाले सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रभाव का आकलन करने का निर्देश दिया।
एनजीटी ने अपने आदेश में साफ किया कि अब तक यूपी सरकार की ओर से इस मामले में उठाए गए कदम पर्याप्त नहीं है, और ना ही यूपी सरकार ने इस मामले को गंभीरता से लिया है. यूपी सरकार के इसी रवैया से नाराज होकर एनजीटी ने इस मामले में जांच को लेकर एम्स को मामले में पक्षकार बनाते हुए जांच के लिए कहा है. साथ ही एनजीटी ने एम्स से 8 हफ्ते में इस पूरे मामले की डिटेल रिपोर्ट भी मांगी है.
चिकित्सा सहायता की कमी
न्यायमूर्ति प्रकाश श्रीवास्तव (अध्यक्ष), न्यायिक सदस्य सुधीर अग्रवाल और विशेषज्ञ सदस्य डॉ. ए. सेंथिल वेल की पीठ ने कहा, “इस मुद्दे की गंभीरता को देखते हुए और यह मानते हुए कि बड़ी संख्या में लोग क्रोमियम और पारा जैसी भारी धातुओं से प्रभावित हैं या प्रभावित होने की संभावना है, और प्रभावी चिकित्सा सहायता की कमी को देखते हुए, हम नई दिल्ली स्थित एम्स के निदेशक को प्रतिवादी के रूप में शामिल करना आवश्यक समझते हैं।”
एनजीटी में एमिकस क्यूरी कात्यायनी की रिपोर्ट
इस मामले में एनजीटी में एमिकस क्यूरी कात्यायनी ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि जाजमऊ, राखी मंडी, पनकी और रूमा जैसे इलाकों के साथ-साथ रानिया, फतेहपुर के गोधरौली, आशापुर और बनियाखेड़ा गांवों के लोगों के ब्लड में भारी मात्रा में क्रोमियम और मरकरी की पाई मिली है. वहीं हेल्थ डिपार्टमेंट ने अभी तक कानपुर नगर में 6757 लोगों की स्क्रीनिंग में 391 रक्त नमूने लिए गए, जिनमें 60 की रिपोर्ट मिलने पर 40 में क्रोमियम की अत्यधिक मात्रा पाई गई. कानपुर देहात में लिए गए सभी 132 नमूनों में क्रोमियम की उपस्थिति थी. फतेहपुर में 49 लोगों के सैंपलों में 47 में क्रोमियम और 3 में मरकरी की पुष्टि हुई है.
केवल साधारण दवा दी जा रही पीड़ितों को
इस मामले में सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इतनी गंभीर कैमीकल के बावजूद पीड़ितों को केवल मल्टीविटामिन, गैस की दवा और लिवर एंजाइम की गोलियां दी जा रही हैं. किसी भी जगह पर चेलीशन थेरेपी या स्पेशलिस्ट डॉक्टर की टीम की कोई व्यवस्था नहीं की गई. एनजीटी ने कहा है कि यह इलाज की बजाय एक औपचारिकता भर लगती है.
एम्स को सौंपे गए यह कार्य
- प्रभावित क्षेत्रों का निरीक्षण और स्वास्थ्य स्थिति का मूल्यांकन
- भारी धातुओं से प्रभावितों के इलाज के लिए मानक उपचार प्रोटोकॉल तैयार करना
- प्रभावित परिवारों की पहचान और जियो टैगिंग
- स्थानीय अस्पतालों की क्षमताओं का मूल्यांकन और सुधार के सुझाव
- हर महीने मरीजों की लंबी अवधि की मॉनिटरिंग व्यवस्था बनानाएम्स विशेषज्ञों को यह भी निर्देश दिया गया है कि वे चाहें तो स्वतंत्र रूप से विशेषज्ञों की टीम भेजकर क्षेत्र में रोगियों की चिकित्सा जरूरतों का आंकलन करें।
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