नई दिल्ली। उच्च न्यायालय ने चुनावों में मतदाताओं को लुभाने के लिए भ्रष्ट तरीका अपनाने और तय नियमों का उल्लंघन करने को गंभीरता से लिया है। अदालत ने चुनाव आयोग से सवाल किया कि वह राजनीतिक दलों के खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं कर रहा, अदालत ने चुनाव आयोग को ऐसी पार्टियों को मात्र नोटिस देने की अपेक्षा कार्रवाई भी करने का निर्देश दिया है। इतना ही नहीं अदालत ने मामले में केंद्र सरकार से जवाब भी मांगा है। मुख्य न्यायाधीश डीएन पटेल व न्यायमूर्ति ज्योति सिंह की पीठ ने यह निर्देश राजनीतिक दलों द्वारा ‘भ्रष्ट प्रथाओं’ को बढ़ावा देने व घोषणापत्र में नकद राशि प्रदान करने के वादे को भ्रष्ट चुनावी परिपाटी घोषित करने मांग को लेकर दायर याचिका पर सुनवाई के दौरान दिया है। पीठ ने सुनवाई के दौरान चुनाव आयोग से पूछा कि आप कार्रवाई करने से क्यों शर्म महसूस कर रहे हैं, कार्रवाई शुरू करें न कि सिर्फ नोटिस और पत्र जारी करना जारी रखें। पीठ ने कहा देखते हैं आप क्या कार्रवाई कर रहे हैं। पीठ ने चुनाव आयोग के वकील के उस तर्क पर असहमति जताई कि वह पहले ही ‘भ्रष्ट प्रथाओं’ के संबंध में दिशा-निर्देश जारी कर चुकी है और इसे राजनीतिक दलों को भेज चुकी है। पीठ ने कहा कि चुनाव आयोग को दिशा-निर्देशों के मद्देनजर कार्रवाई शुरू करनी चाहिए। पीठ ने दो राजनीतिक दलों-इंडियन नेशनल कांग्रेस (आईएनसी) और तेलुगु देशम पार्टी (टीडीपी) को भी मामले में अपना पक्ष रखने का निर्देश दिया है। याचिका में आरोप लगाया गया है कि 2019 के आम चुनाव में कांग्रेस और टीडीपी ने समाज के कुछ वर्गों को न्यूनतम आय योजना का फायदा देने का वादा करते हुए कहा कि 72 हजार रुपये वार्षिक आय दी जाएगी। याची ने कहा कि यह एक तरह से नकद राशि की पेशकश है। यह जनहित याचिका अधिवक्ता पराशर नारायण शर्मा और कैप्टन ने दायर की है। याची ने कहा इस प्रकार की घोषणा को गैरकानूनी घोषित किया जाए। उन्होंने कहा कि अगर राजनीतिक दल किसी काम के बिना पैसा देने की प्रवृत्ति शुरू करते हैं तो हमारे उद्योग, कृषि खत्म हो जाएंगे। हालांकि कोविड में धन लोगों के खातों में डालना एक असाधारण स्थिति है। याची ने कहा लोकतंत्र की सफलता एक ईमानदार सरकार पर टिकी है जो एक स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव से चुनी जाती है। नकदी की पेशकश लोकतंत्र की नींव में कील साबित होगी।