नई दिल्ली। हर वर्ष कन्या संक्रांति पर दुनिया के पहले इंजीनियर और वास्तुकार भगवान विश्वकर्मा की जयंती मनाई जाती है। इस दिन कारखानों और कार्यालयों में उपकरणों की पूजा की जाती है। 17 सितंबर शुक्रवार को इस दिन परिवर्तिनी एकादशी भी है इस एकादशी तिथि पर भगवान विष्णु सोते हुए करवट लेते हैं। विश्वकर्मा पुराण के अनुसार आदि नारायण ने सर्वप्रथम ब्रह्माजी और फिर विश्वकर्मा जी की रचना की। भगवान विश्वकर्मा को संसार का पहला इंजीनियर और वास्तुकार माना जाता है। मान्यता है कि इन्होंने ब्रह्माजी के साथ मिलकर इस सृष्टि का निर्माण किया था। विश्वकर्मा पूजा के दिन विशेष तौर पर औजारों, निर्माण कार्य से जुड़ी मशीनों, दुकानों, कारखानों आदि की पूजा की जाती है। इसके साथ ही साथ विश्वकर्मा जी को यंत्रों का देवता भी माना जाता है। क्यों मनाते हैं विश्वकर्मा पूजा: मान्यताओं के अनुसार कन्या संक्रांति पर भगवान विश्वकर्मा का जन्म हुआ था। शास्त्रों में ऐसी मान्यता है कि विश्वकर्मा जयंती पर भगवान विश्वकर्मा की पूजा करने से कारोबार में वृद्धि होती है। धन-धान्य और सुख-समृद्धि के लिए भगवान विश्वकर्मा की पूजा करना आवश्यक और मंगलदायी है। इस दिन उद्योगों, फैक्ट्रियों और मशीनों की पूजा की जाती है। मान्यता है कि इस दिन विश्वकर्मा पूजा करने से खूब तरक्की होती है और कारोबार में मुनाफा होता है। यह पूजा विशेष तौर पर सभी कलाकारों, बुनकर, शिल्पकारों और औद्योगिक क्षेत्रों से जुड़े लोगों द्वारा की जाती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार कहा जाता है कि प्राचीन काल की सभी राजधानियों का निर्माण भगवान विश्वकर्मा ने ही किया था। स्वर्ग लोक, सोने की लंका, द्वारिका और हस्तिनापुर भी विश्वकर्मा द्वारा ही रचित हैं। विश्वकर्मा पूजा विधि और सामग्री: यह पूजा उन लोगों के लिए महत्वपूर्ण है जो कलाकार, शिल्पकार और व्यापारी हैं। ऐसी मान्यता है कि भगवान विश्वकर्मा की पूजा करने से व्यापार में वृद्धि होती है। धन-धान्य और सुख-समृद्धि की अभिलाषा रखने वालों के लिए भगवान विश्वकर्मा की पूजा करना आवश्यक और मंगलदायी है। भगवान विश्वकर्मा जी की पूजा के लिए आवश्यक सामग्री जैसे अक्षत, फूल, चंदन, धूप, अगरबत्ती, दही, रोली, सुपारी,रक्षा सूत्र, मिठाई, फल आदि की व्यवस्था कर लें। इसके बाद फैक्ट्री, वर्कशॉप, दुकान आदि के स्वामी को स्नान करके सपत्नीक पूजा के आसन पर बैठना चाहिए। कलश को अष्टदल की बनी रंगोली पर रखें। फिर विधि-विधान से क्रमानुसार स्वयं या फिर अपने पंडितजी के माध्यम से पूजा करें। ध्यान रहे कि पूजा में किसी भी प्रकार की शीघ्रता भूलकर न करें। भगवान विश्वकर्मा की पूजा का मंत्र: भगवान विश्वकर्मा की पूजा में ‘ॐ आधार शक्तपे नम: और ॐ कूमयि नम: ॐ अनन्तम नम:, ‘पृथिव्यै नम:’ मंत्र का जप करना चाहिए। जप करते समय साथ में रुद्राक्ष की माला रखें। विश्वकर्मा पूजा 2021 का शुभ मुहूर्त: 17 सितंबर 2021 को कन्या संक्रांति है। इस दिन सूर्यदेव कन्या राशि में प्रवेश करते हैं। कन्या संक्रांति पर भगवान विश्वकर्मा की पूजा का आयोजन किया जाता है। इस तिथि पर संक्रांति का पुण्य काल 17 सितंबर सुबह 6 बजकर 7 मिनट से आरंभ होकर 18 सितंबर को 3 बजकर 36 मिनट तक रहेगा। लेकिन इस बात का विशेष ध्यान रखें कि 17 सितंबर को राहुकाल के समय पूजा न करें।