श्रीमद्भागवत कथा श्रवण करने से ज्ञान की होती है प्राप्ति: दिव्य मोरारी बापू
राजस्थान/पुष्कर। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी ने कहा कि भक्ति, ज्ञान-वैराग्य का अन्योन्याश्रित संबंध है। श्रीमद्भागवत महापुराण में भक्ति महारानी को मां बताया गया। ज्ञान-वैराग्य को उनका पुत्र बताया गया। बिना भक्ति के ज्ञान-वैराग्य बिना मां के बालक के समान हैं और बिना ज्ञान-वैराग्य के भक्ति बिना संतान की मानी जाती है। हमारे आपके जीवन में ज्ञान, वैराग्य और भक्ति तीनों की प्राप्ति श्रीमद्भागवत कथा श्रवण करने से होती है। ईश्वर के प्रति जो प्रेम है, इसी का नाम भक्ति है। हमारे आपके भीतर भक्ति विद्यमान हैं। हमारा प्रेम ईश्वर को समर्पित हो, जिससे दो संतान जन्म लेती हैं, एक का नाम ज्ञान है दूसरे का नाम वैराग्य है। ज्ञान के उदय से हमारे जीवन का अंधकार समाप्त हो जाता है। जिससे क्या सत्य है, क्या असत्य हैं, इसका बोध हो जाता है। जब प्रकाश ही हो गया तो भ्रम की स्थिति ही नहीं रह जाती। फिर वैराग्य की आवश्यक है। वैराग्य के द्वारा जो असत है उसको हम हटा देते हैं। फिर हमारे जीवन में भक्ति आवश्यक है। जो सत्य है उसी की हमको आराधना उपासना करना है और वो परमात्मा है। मंत्र में बड़ी शक्ति होती है। सामान्य व्यक्ति नहीं समझ सकता। उसे लगता है शब्द तो है। फिर भागवत में कहते हैं शब्द में बड़ी शक्ति होती है। शब्द की शक्ति से ही सब कुछ होता है। घर परिवार समाज में आप जो कुछ कहते हैं वही होता है। आप कुछ कहते हैं और वह होता है। वह शब्द की ही शक्ति है। हम-आप किसी को खराब शब्द बोलते हैं दंड मिलता है। खराब शब्द में इतना पावर है, तो मंत्र के शब्दों की पावर को क्या कहना है। भगवान के नाम में अमित शक्ति है। मंत्र अथवा नाम को बार-बार दोहराना, इसी को जप कहते हैं। जप करने से सारे कार्यों की सिद्धि होती है। जप से देव की प्राप्ति होती है। शंभूगढ़ की पावन भूमि, पूज्य महाराज श्री-श्री घनश्याम दास जी महाराज के पावन सानिध्य में श्रीमद्भागवत सप्ताह ज्ञानयज्ञ के तृतीय दिवस वामन अवतार की कथा का गान किया गया। कल की कथा में भगवान श्री राम का अवतार और भगवान् नंदनंदन श्याम सुंदर का प्राकट्य एवं नंदोत्सव की कथा का गान किया जायेगा।