पीएम मोदी ने पीठासीन अधिकारियों के सम्मेलन में वन नेशन, वन लेजिस्लेशन का दिया मंत्र

हिमाचल प्रदेश। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शिमला में हो रहे पीठासीन अधिकारियों के सम्मेलन में ‘वन नेशन, वन लेजिस्लेशन’ का मंत्र दिया है। उन्होंने कहा कि सदन में चर्चा में मर्यादा, गंभीरता का पालन हो, कोई किसी पर राजनीतिक छींटाकशी न करें, ऐसा सबसे स्वस्थ दिन और स्वस्थ समय भी तय हो। पीएम मोदी ने बुधवार को शिमला में 82वें अखिल भारतीय पीठासीन अधिकारियों के सम्मेलन के उद्घाटन सत्र को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिये संबोधित किया। यह भी बहुत सुखद है कि सम्मेलन की इस परंपरा को 100 साल हो रहे हैं। इस अवसर पर लोकसभा अध्यक्ष, राज्यसभा के उपसभापति और 27 राज्यों के विधानसभा अध्यक्ष भी उपस्थित थे। ऐतिहासिक कौंसिल चैंबर भवन शिमला में लोकसभा अध्यक्ष की अध्यक्षता में हुए इस सम्मेलन में प्रधानमंत्री ने नई दिल्ली से ‘एक राष्ट्र, एक विधायी मंच’ का विचार प्रस्तुत किया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वन नेशन, वन लेजिस्लेटिव प्लेटफार्म का मंत्र देते हुए कहा कि एक ऐसा डिजिटल प्लेटफार्म या पोर्टल बनाया जाए जो संसदीय व्यवस्था को तकनीकी बूस्ट दे और देश की सभी लोकतांत्रिक इकाइयों को भी जोड़ने का काम करे। सदनों के लिए सारे संसाधन इस पोर्टल पर उपलब्ध हों। सेंट्रल और स्टेट लेजिस्लेशन पेपरलेस मोड में काम करें। उन्होंने कहा कि एक ऐसा पोर्टल हो, जो न केवल संसदीय व्यवस्था को जरूरी तकनीकी गति दे, बल्कि देश की सभी लोकतांत्रिक इकाइयों को जोड़ने का भी काम करे। प्रधानमंत्री ने जोर देते हुए कहा कि अगले 25 वर्ष भारत के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं। उन्होंने आग्रह किया कि वे एक ही मंत्र को जीवन में उतारें, वह ‘कर्तव्य, कर्तव्य, कर्तव्य’ है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि लोकतंत्र सिर्फ एक व्यवस्था नहीं है, यह भारत का स्वभाव और सहज प्रकृति है। आने वाले वर्षों में देश को नई ऊंचाइयों में जाना है। यह संकल्प ‘सबके प्रयास’ से पूरे होंगे। चाहे पूर्वोत्तर की दशकों पुरानी समस्याओं का समाधान हो, दशकों से अटकी विकास परियोजनाओं को पूरा करना हो। ऐसे कितने ही काम हैं, जो देश ने बीते सालों में किए हैं। प्रधानमंत्री ने दृढ़तापूर्वक कहा कि सदन की परंपराएं और व्यवस्थाएं स्वभाव से भारतीय हों। मोदी बोले – हमारी नीतियां और हमारे कानून भारतीयता के भाव को ‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’ के संकल्प को मजबूत करने वाले हों। सबसे महत्वपूर्ण सदन में खुद का आचार-व्यवहार भी भारतीय मूल्यों के हिसाब से हो, यह सबकी जिम्मेदारी हो। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्रस्ताव किया कि क्या साल में तीन-चार दिन सदन में ऐसे रखे जा सकते हैं, जिसमें समाज के लिए कुछ विशेष कर रहे जनप्रतिनिधि अपना अनुभव बताएं। अपने सामाजिक जीवन पक्ष के बारे में देश को बताएं। प्रधानमंत्री ने यह प्रस्ताव भी रखा कि बेहतर चर्चा के लिए अलग से समय निर्धारित कर क्या किया जा सकता है। ऐसी चर्चा की जानी चाहिए जिसमें मर्यादा का, गंभीरता का पूरी तरह से पालन हो, कोई किसी पर राजनीतिक छींटाकशी न करे। उन्होंने कहा कि एक तरह से वह सदन का सबसे ‘स्वस्थ समय’ हो, ‘स्वस्थ दिवस’ हो।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *