चेक बाउंस मामले में प्रतिपूरक पहलू को नहीं किया जा सकता है नजरअंदाज: उच्च न्यायालय

जम्मू-कश्मीर। जम्मू-कश्मीर और लद्दाख उच्च न्यायालय ने दस लाख का चेक बाउंस होने के मामले में दो लाख रुपये का जुर्माना और छह माह की सजा सुनाने के मामले में ट्रायल कोर्ट के आदेश को रद्द करते हुए कहा कि इस तरह के मामले में फैसला सुनाते समय नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट एक्ट (एनआईए) के तहत प्रतिपूरक पहलू को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। इसके साथ ही हाई कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट को मामला वापस भेजते हुए पुन: फैसला सुनाने के लिए कहा है। 24 जनवरी 2020 को विशेष मोबाइल मजिस्ट्रेट ने दस लाख का चेक बाउंस होने पर दो लाख का जुर्माना और छह माह की सजा सुनाई थी। पीड़ित पक्ष ने इस फैसले के खिलाफ उच्च न्यायलय में अपील की थी कि सजा व जुर्माने के बाद उसके मूल धन दस लाख रुपये के बारे में इस फैसले में कोई स्पषटता नहीं है। उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति संजीव कुमार की पीठ ने मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि ऐसे मामलों में फैसला सुनाते समय सभी मजिस्ट्रेटों को एक समान मुआवजे की राशि तय करनी चाहिए। मजिस्ट्रेट ने एनआई अधिनियम की धारा 138 के तहत अपराध के लिए एक आरोपी को दोषी ठहराया है। उक्त अधिनियम के तहत प्रतिपूरक पहलू को नजरअंदाज नहीं कर सकता है। ऐसा आर्थिक दंड लगाया जाना चाहिए कि शिकायतकर्ता को मुआवजे से प्रतिपूर्ति के रूप में राहत मिल सके। अदालत ने कहा कि मौजूदा मामले में ट्रायल कोर्ट इन सभी पहलुओं को ध्यान में रखने में बुरी तरह विफल रहा और शिकायतकर्ता को मुआवजे के रूप में 2 लाख रुपये का भुगतान करने का आदेश दिया है, जबकि चेक की स्वीकार्य राशि दस लाख रुपये थी। कोर्ट ने कहा कि विधायिका ने मजिस्ट्रेट को जुर्माने की सजा देने का विवेक दिया है जो कि चेक की राशि को दोगुना करने के लिए बढ़ाया जा सकता है। शिकायतकर्ता को पर्याप्त क्षतिपूर्ति मिलनी चाहिए।

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