पुष्कर/राजस्थान। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि मनुष्य अपनी दृष्टि पर संयम नहीं रखेगा तो अंतःकरण पर संयम रखना संभव नहीं, वह फिर अंतःकरण (मन) को विकृत होने से नहीं बचा पायेगा। जीवन सुधारने के लिये इंद्रियों को पवित्र करना होगा। संयम जीवन के कल्याण के लिए बहुत आवश्यक है। बलपूर्वक इंद्रियों को रोकने से कुंठाएं एवं विकृतियां होती हैं। अतः वासनाओं को उपासना के द्वारा परिवर्तित कर देना चाहिए।
तपस्या व संयम इसीलिये है। मनुष्य का अंतःकरण भगवदाकाराकारित होना चाहिए। तभी जीवन में परिवर्तन आयेगा। इमानदारी पूर्वक किया गया श्रवण, कीर्तन, पादसेवन मनुष्य को साधु बना देता है। मरण को मंगलमय बनाना है, तो जीवन मंगलमय बनाओ, जीवन को मंगलमय बनाना है तो आचरण मंगलमय बनाओ, आचरण मंगलमय बनाने से व्यवहार मंगलमय बनता है, व्यवहार मंगलमय हो इसलिये मन को मंगलमय बनाना होगा तथा मन को मंगलमय बनाने के लिये आंखें मंगलमय होनी चाहिए।
तभी अंतिम परीक्षा में सफलता प्राप्त होगी। यदि आंख, कान, रसना, वाणी पर संयम नहीं है तो ठोस परिवर्तन की आशा भी नहीं करनी चाहिए। अगर जीवन को ऊर्ध्वगामी बनाना है तो श्रेष्ठ संगति, सावधानी और सधना आवश्यक है। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं नवनिर्माणाधीन गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना। श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)।