राजस्थान/पुष्कर। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन। मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि।। इसका अर्थ ऐसा नहीं कि तुम फल को न चाहो और कर्म करते रहो। ऐसा अर्थ अगर करोगे तो मुश्किल में पड़ जाओगे। फिर कर्म में हमें कौन प्रेरित करता है, हम सत्संग में शामिल होते हैं तो ऐसा भाव आवश्यक रहता है कि कुछ मिलने वाला है। इसलिए हम शामिल होते हैं। हमें कौन कर्म में लगाता है, इस बात को कृष्ण गीता में बहुत सुंदर ढंग से समझाते हैं। कर्म फल की आसक्ति नहीं, मगर कर्म प्रेम हमें अपने कार्यों में प्रेरक है। भगवान् से कुछ चाहिए कि भगवान् को चाहते हो, इन दोनों में फर्क है। उन्होंने कहा कि हम कर्म से चाहने वाले लोग हैं, हम कर्म को चाहने वाले लोग नहीं हैं और जब तक हम कर्म से चाहते रहेंगे, तब तक हमारा कर्म, योग नहीं बन सकता, कर्मयोग नहीं हो सकता, इसलिये कर्म को चाहें। वहीं विश्वकवि रवींद्रनाथ ने गीतांजलि में इस प्रकार संकेत किया है। हे ईश्वर! यह शरीर तेरा मंदिर है, अतः मैं इसे हमेशा पवित्र रखूंगा। आपने मुझे यह ह्रदय दिया है, मैं इसे आपको प्रेम से भरकर दूंगा। आपने मुझे यह बुद्धि दी है, इस बुद्धि रूपी दीपक को मैं हमेशा निर्मल और तेजस्वी रखूंगा। भारतीय संस्कृति में धर्म का मतलब शिखा (चोटी) माला या जनेऊ धारण करना नहीं है। यह सभी उपकरण ईश्वर प्राप्ति के साधन मात्र है, जीवन के साध्य नहीं। मानव का साध्य केवल एक ही है मोक्ष, अत्यंतिक सुख-शांति। ईश्वर से अधिक सुंदर और प्रिय कौन हो सकता है, मानव शरीर उस ईश्वर का आवास है, उसे मनमोहक एवं सुसंस्कृत बनाना हमारा कर्तव्य रूप धर्म है। मन की प्रसन्नता, शांत भाव, भगवत् चिंतन, मन का निग्रह और अंतःकरण के भावों की पवित्रतारूप आंतरिक शुद्धि से ईश्वर के शरीर-रूप निवास स्थान को सजाना आवश्यक है। धर्म कहता है संपत्ति प्राप्त करना है, करो। लेकिन प्राप्त करो प्रमाणिकता से, उत्तम व्यवहार से, शोषण या लूट-खसोट से नहीं। दूसरों को रुलाकर स्वयं मत हंसो। धर्म कहता है- संसार में रहो, परिवार में रहो, संसार के सारे कर्तव्यों का निर्वाह करो, संसार के सुखों को भी प्राप्त करो। लेकिन विवेक के साथ। पशु जैसा नहीं, मानव जैसा। सदा विवेक रूप धर्म के अंकुश में रहना चाहिए। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं नवनिर्माणाधीन श्री दिव्य घनश्याम धाम गोवर्धन से साधू संतों की शुभ मंगल कामना। श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)।