मानवता का मनोविज्ञान है गीता: दिव्य मोरारी बापू

पुष्कर/राजस्थान। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि श्रीमद्भगवद्गीता का मनोविज्ञान-गीता मानवता का मनोविज्ञान है। इस बिखरे हुए मन को, इस बिखरी हुई चेतना को, किस प्रकार जोड़ सकते हैं? अखंड कर सकते हैं और अखंड की आराधना कर सकते हैं। यह श्री कृष्ण समझाते हैं। माया- जो वास्तव में रहे नहीं प्रतीतिमात्र हो, ऐसी झूठी वस्तु का नाम माया है। माया वास्तव में शुद्ध चैतन्य में है ही नहीं। अनुभूति- आस्तिक अपनी आस्तिकता को केवल मान्यता न माने। अनुभूति की यात्रा शुरू कर दे और नास्तिक केवल अपनी नास्तिकता को मान्यता न रहने दे और अनुभूति की ओर यात्रा आगे शुरू करें। समाज- याद रखना समाज उदार भी है और साथ-साथ होशियार भी है। कहां दान देना चाहिए? किस तरह से उसका उपयोग होता है? इन सारी बातों को समाज ध्यान में रखता है। व्यासगद्दी पर बैठकर समाज को ज्ञान रहित समझकर उपदेश देने में कोई फायदा नहीं है। कर्म करो- भगवान् श्री कृष्ण कहते हैं कि- फल की लालसा से, फल के लिए, फल की इच्छा से, कर्म करना ठीक नहीं है। लेकिन तुम अकर्मण्य न हो, इसलिए कर्म करते रहो। क्योंकि कर्म करने में तेरा अधिकार है। कर्म में तू स्वतंत्र है। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना। श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम काॅलोनी, दानघाटी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, गोवर्धन, जिला-मथुरा (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)।

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