नई दिल्ली। देश में बिजली संकट गहराता जा रहा है। इस भीषण गर्मी में कटौती के कारण लोगों की मुश्किलें बढ़ गयी हैं। खपत बढ़ती जा रही है जबकि उत्पादन में गिरावट आ रही है जिससे स्थितियां और विषम हो गयी हैं। तापीय बिजली घरों को आवश्यकता के अनुरूप कोयले की आपूर्ति नहीं हो रही है। इसके साथ ही बिजली उत्पादक कम्पनियों को उनके बकाये का भुगतान भी नहीं हो रहा है।
राज्यों पर केन्द्रीय बिजली उत्पादक कम्पनियों और कोयला उत्पादक केन्द्रीय कम्पनी सीआईएल का बकाया लगातार बढ़ता ही जा रहा है। इसके लिए राज्य सरकारें पूरी तरह जिम्मेदार हैं। छह राज्यों पर बिजली उत्पादक कम्पनियों का 72 हजार करोड़ रुपये का बकाया चिन्ता का विषय है। इन छह राज्यों में उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु, महाराष्ट्र, राजस्थान, मध्यप्रदेश और जम्मू-कश्मीर हैं, जिनमें तमिलनाडु पर सर्वाधिक 20842.53 करोड़ रुपये बकाया है।
इस बकाये से बिजली उत्पादक कम्पनियों की आर्थिक स्थिति खराब हो गयी है। बिजली मंत्रालय के सचिव ने इन राज्यों के मुख्य सचिवों को पत्र लिखकर बकाये का भुगतान शीघ्र करने का आग्रह किया है लेकिन अभी तक राज्य सरकारें इस दिशा में सक्रिय नहीं हुई हैं जबकि राज्यों के बिजली बोर्ड उपभोक्ताओं से उनके बिलों का भुगतान प्राप्त कर लेती हैं। जो उपभोक्ता बिलों का भुगतान नहीं करते हैं, उनके विद्युत कनेक्शन को काट दिया जाता है।
एक बड़ी समस्या बिजली चोरी की भी है जिस पर अंकुश नहीं लग पा रहा है। बिजली चोरी को बढ़ावा देने में विभागीय कर्मचारियों का भी बड़ा हाथ रहता है इनके खिलाफ सख्त काररवाई होनी चाहिए। जहां तक कोयले का प्रश्न है उस पर विरोधाभास की स्थिति है। विद्युत और कोयला मंत्रालय के वक्तव्य अलग-अलग है। कोयला मंत्रालय कहता है कि कोयले की कमी नहीं है जबकि बिजली मंत्री आरके सिंह का कहना है कि यदि समय रहते कोयले का आयात नहीं हुआ तो बिजली संकट में वृद्धि संभव है। इसलिए केन्द्र और राज्य सरकारों की जिम्मेदारी है कि वे अपने दायित्वों का निर्वहन करें जिससे कि संकट से उबरा जा सके।