ज्ञानयज्ञ है सबसे बड़ा परमार्थ: दिव्य मोरारी बापू

पुष्कर/राजस्थान। किसी वस्तु को प्राप्त करना दुर्लभ है। प्रारब्ध और पुरुषार्थ से कुछ भी प्राप्त होता है। धन, बल, विद्या, पद, प्रतिष्ठा को प्राप्त करके उसका सदुपयोग करना अत्यन्त दुर्लभ है। ज्ञानयज्ञ सबसे बड़ा परमार्थ है। शुकताल से ही भागवत का प्रारंभ हुआ। वट वृक्ष के नीचे कथा हुई।शुकताल में वह वटवृक्ष अभी भी है जहां पर कथा हुई। भगवान के तीन रूप हैं। न वो काला है, न गोरा है, न वो नाटा है, न लंबा है, न दुबला है, न मोटा है। भगवान के तीन रूप हैं। वो शत् हैं, वो चिद् हैं और परमात्मा आनंद स्वरूप हैं। शत् रूप से भगवान सारे संसार में विराजमान है। शत् सर्वत्र विराजमान सत्ता है। जैसे लिखा रहता है आप कैमरे की नजर में हैं, वैसे हम आप प्रभु की नजर में हैं, सदैव सावधान रहना चाहिए। ईशावास्योपनिषद का सूत्र है-ईशावास्यमिदं सर्वं- परमात्मा सर्व काल में है, और सर्वत्र हैं। भगवान कहां है, प्रश्न कहां नहीं है? कब हुए? कब नहीं थे। समुद्र की मछली दूसरी मछली से कहती है, तुमने समुद्र देखा, वह समुद्र में ही पैदा हुई, बड़ी हुई लेकिन उसे समुद्र का पता ही नहीं है। हम लोग परमात्मा में ही उत्पन्न होते हैं, परमात्मा में ही जीवन का निर्वाह हो रहा है, और अंत में परमात्मा में ही सब कुछ लीन हो जाता है।

भगवान कब मिलेंगे ये प्रश्न ठीक नहीं है। ईश्वर तो मिला हुआ है, कब दिखाई देंगे। मां की गोद पाने के लिए कुछ नहीं करना पड़ता, मां की गोद मिली हुई है। परमात्मा दिखाई नहीं पड़ रहे हैं। प्रश्न है कब दिखाई पड़ेगा। जिनके पिया परदेस बसत हैं, लिख-लिख भेजत पाती। मोरे पिया मोरे मन में बसत हैं न कहीं आती-जाती।। ।।मीराबाई।। ईश्वरः सर्व भूतानां हृद्देशेऽर्जुन- तिष्ठति।। एक ही शहर के, एक ही गली के, एक ही मकान में, मैं और वो दोनों रहते हैं। पर पता नहीं क्यों न मिले हम, क्यों न मिले वो। तड़प मेरे भी मन में है। मुझे बनाने वाला कौन है? तड़प उनको भी होगी, बनाया वो कैसा है। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना। श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कालोनी, दानघाटी,बड़ी परिक्रमा मार्ग, गोवर्धन,जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)।

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