जम्मू-कश्मीर। आपरेशन आल आउट की सफलता और अनुच्छेद 370 के निष्क्रिय होने के बाद अलगाव वादियों पर पूरी तरह नकेल कस दिये जाने की अप्रत्याशित घटनाओं से पड़ोसी देश पाकिस्तान अभी उबर भी नहीं पाया था कि सरकार की कश्मीरी पंडितों और प्रवासी गैर-मुस्लिम कर्मचारियों को बसाने की योजना से उसके पांव के नीचे से जमीन खिसक गयी है।
राज्य में पिछले कुछ दिनों से ताबड़तोड़ आतंकी घटनाओं में गैर-मुस्लिमों की लक्षित हत्याएं (टारगेट किलिंग) पड़ोसी देश और आतंकी गुटों के आकाओं की हताशा और बौखलाहट का संकेत है। आतंकवादी संघटन घाटी में सामान्य स्थिति के लौटने से चिन्तित हैं।
कश्मीर में दहशत का माहौल बनाने और गैर-मुस्लिमों को पलायन के लिए बाध्य करने के लिए कायराना हमले किए जा रहे हैं जिसकी वैश्विक स्तर पर निन्दा की जानी चाहिए। केन्द्र सरकार ने भी टारगेट किलिंग के जरिए दबाव बनाने की आतंकी कोशिश को कुचलने के लिए अमित शाह की अध्यक्षता में घाटी में सख्ती की विस्तृत रणनीति तैयार की गयी है।
हालांकि इस रणनीति का अभी पूरी तरह खुलासा नहीं किया गया है लेकिन पलायन रोकने के लिए आठ सुरक्षित जोन बनाने और बड़े आतंकियों की तरह अब भाड़े के आतंकियों के पूर्ण सफाये की योजना बनायी गयी है। लक्षित हत्याओं के बीच कश्मीरी पंडितों और
कर्मचारियों को घाटी से बाहर न भेजकर, बल्कि उनका सुरक्षित स्थानों पर स्थानान्तरण का फैसला सरकार की दृढ़ इच्छाशक्ति और आत्मविश्वास को दर्शाती है। साथ ही जिला प्रशासन ने स्पष्ट किया कि घाटी में लक्षित हिंसा में वृद्धि से वार्षिक
अमरनाथ यात्रा की योजना में कोई बदलाव नहीं होगा। यह जानकारी ऐसे समय मिली जब 30 जून से 11 अगस्त तक चलने वाली इस यात्रा को लेकर श्रद्धालुओं में ऊहापोह की स्थिति थी। अब दर्शनार्थी उत्साहित हैं और उनका मनोबल भी बढ़ा है।
घाटी में पलायन से लोगों में गलत सन्देश जा रहा है। इस पर रोक लगाने के लिए गंभीरता से कोई ठोस रणनीति बनानी होगी। सुरक्षा के प्रति लोगों में भरोसा बढ़ाने के लिए सरकार को हर स्तर तक जाने में कोई परहेज नहीं करना चाहिए।