नागरिक कानून में न हो विविधता

नई दिल्ली। भारत के संविधान में सभी नागरिकों को एक समान अधिकार तो दिया गया है लेकिन अभी इसमें कहीं न कहीं रोड़ा अटका हुआ है। देश में सभी नागरिकों के लिए एक समान कानून होना चाहिए और इसके लिए कोई धर्म का कोई आधार नहीं होना चाहिए। जब हमारा राष्ट्र चरित्रसंविधान और मुद्रा एक ही है तो कानून में इस प्रकार की विविधता होनी ही नहीं चाहिए।

जिस तरह भारतीय दंड संहिता और सीआरपीसी सब पर लागू है उसी प्रकार समान नागरिक कानून भी होना चाहिए। समान नागरिक कानून को किसी भी धर्म या संप्रदाय की जगह देशहित से देखने की जरूरत है। इसके लिए आवाज आजादी के बाद से उठने लगी थी और लंबे समय तक इस पर चर्चा भी हुई लेकिन दृढ़ इच्छाशक्ति के अभाव और भारत की विविधता को देखते हुए अब तक इसको लागू नहीं किया जा सका है।

जबकि समान नागरिक संहिता का संकल्प भारतीय जनता पार्टी के प्रमुख मुद्दों में से एक है। गृह मंत्री अमित शाह ने पूर्व में एक  संकेत दिया था कि समान नागरिकता संशोधन कानून के बाद इसको प्रभावी बनाने के लिए कानून बनाया जाएगा और उसे लागू किया जाएगा। सरकार ने जम्मू कश्मीर में धारा 370 समाप्त करतीन तलाक पर कानून बनाकर और नागरिकता संशोधन कानून लाकर जो धमाका किया उससे कई प्रकार की सामाजिक कुरीतियों को दूर किया है।

उसी इच्छा के साथ समान नागरिक कानून भी बनाया जाना चाहिए और इसके लिए यह उपयुक्त अवसर भी है क्योंकि देश में राजनीतिक स्थिरता और भाजपा की पूर्ण बहुमत वाली सरकार है। भाजपा सरकार को अब इस धमाके के लिए भी पहल करनी चाहिए। समान नागरिक कानून लागू होने का सबसे अधिक लाभ हर समाज की महिलाओं को होगा। इसके लागू होने से देश की बहुत सी समस्याओं का समाधान स्वतः हो जाएगा और संविधान की भावना का भी पूर्ण सम्मान होगा।

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