गीता का पाठ करने वाला व्यक्ति हो जाता है कुंठा से रहित: दिव्य मोरारी बापू

पुष्कर/राजस्थान। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि गीताशास्त्रमिदं पुण्यं यः पठेत्प्रयतः पुमान्। विष्णोः पदमवाप्नोति भयशोकादिवर्जितः।। श्रीमद्भगवद्गीता शास्त्र परम पुण्यमय है। धर्ममय है। जो व्यक्ति श्रद्धावान होकर गीता का पाठ करेगा, गीता पढ़ेगा या सुनेगा उसे भगवान विष्णु का पद प्राप्त हो जायेगा। अर्थात कुंठा से रहित हो जायेगा। यदि बैकुंठ मिलेगा तो बैकुंठ से लाभ क्या होगा? बैकुंठ में पांच चीजें नहीं हैं। न तो वहां पाप है, न कोई पराया है, वहां कर्म फल का भोग नहीं है। वहां तो अपने स्वरूप का बोध है। वहां किसी प्रकार का बंधन नहीं है, वहां किसी प्रकार का भय नहीं है तथा मृत्यु नहीं है, न माया है, न मृत्यु है। बैकुंठ पहुंच गये अर्थात् सदा के लिए चिंता से मुक्त हो गये। बैकुंठ में न तो किसी प्रकार का विकार है और न किसी प्रकार की पीड़ा है। वहां तो आनंद ही आनंद है। बैकुंठ में किसी को बुढ़ापा नहीं आता, सदा युवान रहते हैं। यहां पर तो अभी-अभी विवाह हुआ और थोड़े दिन में ही वृद्धावस्था के चिन्ह दिखाई पड़ने लगते हैं। कभी बाल गिरने शुरू हो गये, कभी दांत गिरने शुरू हो गये और उन्हें लगता है कि हे भगवान! एक बार फिर लौटा दे हमारी युवावस्था। अभी-अभी हम बाबूजी थे अब बाबाजी हो गये। अभी तृष्णा और संसार के सुखों की लालसा पूरी हुई नहीं कि दादा जी बन गये, दादी जी बन गये, बड़ी जल्दी बुढ़ापा आता है। लघु जीवन सम्बत पंचदशा, कलपान्त न नाश गुमान असा।। जीवन थोड़ा सा है, देखते-देखते समाप्त हो जायेगा, फिर जन्मो, फिर मरो, भगवान शंकराचार्य कहते हैं। ”पुनरपि जन्मं पुनरपि मरणं” जो व्यक्ति गीता का अध्ययन करता है या सुनता है। जन्म-जन्मांतर, युग-युगांतर, कल्प कल्पान्तर के पाप-ताप सदा के लिये नष्ट हो जाते हैं। अन्य ग्रंथों में विस्तार बहुत है और सार थोड़ा है श्रीमद्भगवद्गीता में विस्तार कम है और सार ज्यादा है। अब आप निर्णय कर लो कि आपको क्या पढ़ना चाहिए। जिसमें विस्तार ज्यादा और सार थोड़ा हो या जिसमें विस्तार थोड़ा और सार ज्यादा हो। स्वाभाविक है कि आप थोड़ी पूंजी लगाकर ज्यादा लाभ चाहते हैं तो फिर आपको थोड़ा श्रम करके गीता पढ़ करके ज्यादा फायदा तो उठा ही लेना चाहिए। श्रीमद्भगवद्गीता में सार ही सार भरा हुआ है। श्रीमद्भगवद्गीता भगवान् के मुख से निकला हुआ मानव मात्र के लिए महाप्रसाद है।आपने घर में जो भोग लगाया वह प्रसाद है और गीता महाप्रसाद है। इसलिए गीता बार-बार पढ़ना और सुनना चाहिए। उपनिषद गो माता है और भगवान् कृष्ण ही गोपाल है। दोग्धा गोपाल नंदनः, । पीने वाला बछड़ा जब तक न आये गाय से दूध नहीं निकलता। अर्जुन हो गये बछड़ा, गीतारूपी अमृत, प्रभु श्री कृष्ण ने दोहन किया। जिसे पूरे संसार ने पिया। गीता गाने सुनने वाला संत है। जिसकी बुद्धि निर्मल नहीं होगी, वह गीता नहीं सुनेगा। वह गीता ज्ञानयज्ञ में बैठ जायेगा फिर भी उसे आनंद नहीं आयेगा। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना। श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कालोनी, दानघाटी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)।

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