अध्यात्म। हर मनुष्य सुख पूर्वक जीने की चाह रखता है। शक्ति और समृद्धि के पथ पर आगे बढ़ने की इच्छा किसकी नहीं होती। परमात्मा सम्पूर्ण ऐश्वर्य का अधिष्ठाता है, सर्वशक्तिमान है। वेद उसे सर्वज्ञ बताते हैं। सांसारिक जीवन में उन्नति और विकास के लिए भी इन्हीं तत्वों की आवश्यकता होती है। बुद्धिमान, शक्तिमान और ऐश्वर्यमान व्यक्ति बाजी मार ले जाते हैं। शेष अपने पिछडे़पन और अभाव का रोना रोया करते हैं।
इन तीन तत्वों का विकास मनुष्य ईश्वर भक्ति से बड़ी सरलता से प्राप्त कर लेता है। कबीर निरक्षर थे किंतु ईश्वर उपासना से उनकी सूक्ष्म बुद्धि का विकास हुआ था। विचार और चिंतन के कारण उनमें वह शक्ति अभिभूत हुई थी, जो बड़े- बड़े विद्यालयों के छात्रों, शिक्षकों को भी नहीं नसीब होती। कबीर अक्षर लिखना नहीं जानते थे, किन्तु वह पंडित हो गए । ध्रुव वेद ज्ञानी न थे, प्रह्लाद ब्रह्मोपदेशक थे, नानक की बौद्धिक मंदता सर्व विदित है।
सूर और तुलसी जब तक साधारण व्यक्ति के तरीकों से रहे तब तक उनमें कोई विशेषता नहीं रही, किन्तु जैसे ही उन में भक्ति रूपी ज्योति का अवतरण हुआ अविद्या रूपी आवरण हट गया और विचार की ऐसी अविरल धारा बही कि काव्याकाश में ‘सूर सूर्य और तुलसी चंद्रमा हो गए। जिन लोगों में ऐसी विलक्षणताएं पायी जाती हैं वह सब ईश्वर चिंतन का ही प्रभाव होती हैं चाहे वह ज्ञान और भक्ति पूर्व जन्मों की हो अथवा इस वर्तमान जीवन की।
उपासना से चित्त शुचिता, मानसिक संतुलन भावनाओं में शक्ति और पंचकोषों में सौमनस्य प्राप्त होता है वह बौद्धिक क्षमताओं के प्रसार से अतिरिक्त है प्रारंभ में वह केवल किसी वातावरण में घटित होने वाली स्थूल परिस्थितियों का ही अनुमान कर पाते हैं किंतु जब भक्ति प्रगाढ़ होने लगती है तो उनकी बुद्धि भी इतनी सूक्ष्म और जाग्रत हो जाती है कि घटनाओं के सूक्ष्म से सूक्ष्म अंग उन्हें ऐसे विदित हो जाते हैं जैसे कोई व्यक्ति कानों में सब कुछ चुपचाप बता गया हो।
गीता में श्रीकृष्ण ने इस बात की पुष्टि करते हुए लिखा है ‘अनन्य भक्ति से ही मुझे लोग प्रत्यक्ष देखते हैं। भक्ति से ही मैं बुद्धि प्रवेश करने योग्य बनता हूं। ईश्वरमुखी आत्माओं में जहां सूक्ष्म बुद्धि का विकास होता है और वह सांसारिक परिस्थितियों को साफ- साफ देखने लगते हैं वहां उनमें सर्वात्म भाव भी जाग्रत होता है।