नई दिल्ली। पिछले करीब दो साल से अधिक समय से पूर्वी लद्दाख के टकराव वाले क्षेत्र में जारी तनाव को कम करते हुए दोनों देशों की सेनाओं का पीछे हटना शान्ति और सौहार्द के लिए अच्छी शुरुआत है। जून 2020 में गलवां घाटी में दोनों देशों के सैनिकों के बीच हुई हिंसक झड़प में भारत के बीस जवान शहीद हुए थे, जबकि चीन के इससे दो गुने से अधिक सैनिक मारे गये थे।
तभी से बड़ी संख्या में दोनों देशों के सैनिक आमने-सामने तैनात हैं। दोनों देशों की सेनाए पूर्वी लद्दाख के टकराव वाले बिन्दु गोगरा- हाटस्प्रिंग से पीछे हट रही है। 15-16 सितम्बर को उज्बेकिस्तान में होने वाले एससीओ शिखर सम्मेलन से पूर्व दोनों देशों की सेनाओं की वापसी को महत्वपूर्ण माना जा रहा है, क्योंकि इस सम्मेलन में भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग भी शामिल होंगे, जहां दोनों नेताओं की मुलाकात हो सकती है।
सेनाओं के टकरराव स्थल से पीछे हटने के समझौते के पीछे चीन पर दबाव था कि वह सीमा पर तनाव घटने का सन्देश दे, क्योंकि ऐसी आशंका थी कि सीमा विवाद को देखते हुए प्रधान मंत्री मोदी एससीओ की बैठक में राष्ट्रपति शी जिनपिंग से द्विपक्षीय मुलाकात को टाल सकते थे। फिलहाल इन बदली परिस्थितियों में दोनों नेताओं की द्विपक्षीय मुलाकात की सम्भावना बढ़ गई है जो स्वातगत योग्य है। अभी भी भारत को सतर्क रहने की जरूरत है, क्योंकि चीन न कभी विश्वसनीय रहा है और न है। सीमा पर उसकी सभी गतिविधियों पर कड़ी निगरानी जरूरी है।