प्रभु का स्मरण ही है अमृत: दिव्य मोरारी बापू

पुष्कर/राजस्थान। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि वेदों-उपनिषदों का सार है श्रीमद् भागवत, उत्तम वस्तु अधिकार के बिना नहीं मिलती। बलि पशु की नहीं अपने भीतर की पशुता को दो। ज्ञान से ही मुक्ति है। हमें जड़ता की ओर नहीं जगदीश की ओर जाना चाहिए। भगवान् के यशगान के अतिरिक्त सबकुछ वृथा है। अंधकार को कोसने से अच्छा है, एक दीप जलाना। जीवन में सहजता सरलता और सजगता होनी चाहिए। प्रभु का स्मरण ही अमृत है और विस्मरण ही मृत्यु है। विचार भाव और क्रिया का योग ही चरित्र है। अभ्यत्व का अमरत्व अभिशाप है। रास पंचाध्यायी: भगवान रस रूप हैं रसो वै सः। उनकी अनुभूति वही है रास! ‘अनुभवगम्य भजहिं जेहिं संता’ गोस्वामी श्री तुलसीदास जी महाराज कहते हैं। भगवान् अनुभूति का विषय है। प्रत्येक क्षण जीवन का हराश तो हो ही रहा है। हराश होते-होते जीवन समाप्त हो जाय उसके पहले जीवन में रास हो जाय, ये जरूरी है। आयुर्नश्यति पशूयतां प्रतिदिनम्। रास पुष्टिमोक्ष है। रास, विलास, हराश और उल्लास इन चारों का पुष्टीमार्ग में बहुत महत्व है। भागवत में रास पंचाध्यायी है। श्रीमद्भागवत में दशम स्कंध है हृदय, और दशम स्कंध में भी रासलीला है श्रीमद्भागवत के पंचप्राण। रास पंचाध्यायी पंचप्राण है। उसमें भी गोपी गीत है श्रीमद्भागवत का सर्वोच्च शिखर! यह जीव और शिव की एकता की कथा है। यहां रासलीला में जिस नृत्य का प्रयोग हुआ है, वह है लास्य, विद्वान लोग ऐसा मानते हैं की र और ल में भेद नहीं है। तो लास्य से हुआ रास्य और रास्य से हुआ रास। अपि से यह बताया कि जीव भगवान् की प्राप्ति के लिए, उनसे रास रचाने के लिए उत्सुक था। आज भगवान् तैयार हो गये। हमें तो मन हो परंतु जब तक भगवान् अनुग्रह न करें, कैसे बात बनेगी? वे रात्रियां आयीं। रामावतार में दंडकारण्य के ऋषि-मुनियों को वचन दिया था, वह रात्रि आयी। शरद पूर्णिमा की रात आयी। भगवान् ने कहा था उन ॠषियों से कि आप सब कृष्णावतार में आना, आप सबको महारास का दर्शन होगा। जीव और ब्रह्म के मिलन को रास कहते हैं। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना। श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कालोनी, दानघाटी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)।

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