पुष्कर/राजस्थान। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि श्रीकील्हदेवजी जिस प्रकार गंगाजी के पुत्र श्रीभीष्मपितामह जी को मृत्यु ने नष्ट नहीं किया, उसी प्रकार स्वामी श्री कील्ह देवजी भी साधारण जीवों की तरह मृत्यु के बस में नहीं हुए, बल्कि उन्होंने अपनी इच्छा से प्राणों का त्याग किया। कारण कि आपकी चित्तवृत्ति दिन-रात श्री रामचंद्र जी के चरणारविंदो का ध्यान करने में लगी रहती थी। अब माया के षड्विकारों पर विजय प्राप्त करने वाले महान् शूरवीर थे। सदा भगवद्भजन के आनंद में मग्न रहते थे। सभी प्राणी आपको देखते ही नतमस्तक हो जाते थे और आप सभी प्राणियों में अपने इष्टदेव को देखकर उन्हें सिर झुकाते थे। सांख्य शास्त्र तथा योग का आपको सुदृढ़ ज्ञान था और योग की क्रियाओं का आपको इतना सुंदर अनुभव था कि- जैसे हाथ में रखे आंवले का होता है। ब्रह्मरंध्र के मार्ग से प्राणों को निकालकर आपने शरीर का त्याग किया और अपने योगाभ्यास के बल से भगवदरूप पार्षदत्त्व प्राप्त किया। इस प्रकार श्री सुमेरुदेव जी के सुपुत्र
श्री कील्ह देव जी ने अपने पवित्र यश को पृथ्वी पर फैलाया, आप विश्वविख्यात संत हुए श्रीअग्रदासजी
स्वामी श्री अग्रदास जी ने भगवद्भजन के बिना क्षणमात्र समय भी व्यर्थ नहीं बिताया। आपका वैष्णव सदाचार पूर्ववर्ती प्राचीन आचार्यों के समान ही था। आप सदा मानसी सेवा एवं प्रगट विग्रह सेवा में तथा भगवन्नाम स्मरण में सावधान रहते थे। सदा राघवेंद्र सरकार के श्री चरणों में मन को लगाये रहते थे। सीताराम बिहार, प्रसिद्ध बाग में आपकी बड़ी प्रीति थी, उसे सींचने, बुहारने आदि की सब सेवाएं सदा अपने हाथ से ही करते थे। आपकी जिह्वा से परम-पवित्र श्रीसीताराम नाम की ध्वनि इस प्रकार होती रहती थी मानो मधुर-2 गर्जन के साथ मंद-मंद वर्षा हो रही है। गुरुदेव पयहारी श्री कृष्ण दास जी ने परम कृपा करके मन-वचन-कर्म से संबंधित आंचल भक्ति का भाव आपको प्रदान किया था। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना। श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कालोनी, दानघाटी,बड़ी परिक्रमा मार्ग, गोवर्धन,जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)।