संस्कृत के कविराजों के राजा थे चक्रवर्ती सम्राट: दिव्य मोरारी बापू

पुष्कर/राजस्थान। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि श्रीनामदेवजी जल-थल और अग्नि आदि में  सर्वत्र अपने इष्टका ही दर्शन करूंगा यह प्रतिज्ञा श्रीनामदेवजी की उसी प्रकार निभी जैसे कि त्रेतायुग में नरसिंह भगवान के दास श्रीप्रल्हादजी की निभी थी। बचपन में ही उनके हाथ से विट्ठलनाथ भगवान् ने दूध पिया। एक मरी हुई गाय को आपने जीवित करके असुरों को अपने भजन बल का परिचय दिया। फिर उस असुरराज के द्वारा दी गई शय्या को नदी के अथाह जल में डाल दिया। उसके आग्रह पर उसी तरह की अनेक शय्याएं निकाल कर दिखा दी। पंढरपुर में पंढरीनाथ भगवान के मंदिर का द्वार उलटकर आपकी और हो गया, इस चमत्कार को देखकर मंदिर के पुजारी सभी श्रोत्रिय ब्राह्मण लोग संकुचित और लज्जित हो गये। प्रेम के प्रभाव से पंढरनाथ भगवान् आपके पीछे-पीछे चलने वाले सेवक की तरह कार्य करते थे। आग से जल जाने पर, अपने हाथ से भगवान् ने आपका छप्पर छाया। श्रीजयदेवजी महाकवि श्री जयदेव जी संस्कृत के कविराजों के राजा चक्रवर्ती सम्राट थे। शेष दूसरे सभी कवि आपके सामने छोटे-बड़े राजाओं के समान थे। आपके द्वारा रचित गीत-गोविंद महाकाव्य तीनों लोकों में बहुत अधिक प्रसिद्ध एवं उत्तम सिद्ध हुआ। यह गीत गोविंद साहित्य के नौ रसों का और विशेषकर उज्जवल एवं सरस रस का सागर है। इसकी अष्टपदियों का जो कोई नित्य अध्ययन एवं गान करे, उसकी बुद्धि पवित्र एवं प्रखर होकर दिन-प्रतिदिन बढ़ेगी। जहां अष्टपदियों का प्रेम पूर्वक गान होता है, वहां उन्हें सुनने के लिए भगवान् श्री राधाकृष्ण अवश्य आते हैं और सुनकर प्रसन्न होते हैं। श्री पद्मावती जी के पति श्री जयदेव जी संत रूपी कमलवन को आनंदित करने वाले सूर्य के समान इस पृथ्वी पर अवतरित हुए। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना। श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कालोनी, दानघाटी,बड़ी परिक्रमा मार्ग, गोवर्धन,जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)।

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