पुष्कर/राजस्थान। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, ।।नमोऽस्तु रामाय।। जो आनंद सिंध सुख रासी। सीकर ते त्रैलोक सुपासी।। सो सुखधाम राम अस नामा। अखिल लोक दायक विश्राम।। परमात्मा आनंद के सिन्धु हैं। प्रकृति ने आनंद सिन्धु से एक बिंदु प्राप्त किया हुआ है। प्रकृति, अविद्यामाया दुःख रूप है। अविद्या माया हमेशा व्यक्ति को दुःख देती है। परमात्मा व्यक्ति को सदा सुख देते हैं। आपके जीवन में अगर कहीं कोई दुःख है तो निश्चित है कि आप अविद्या माया से जुड़े हुए हैं। प्रकृति में आपका मन लगा है, प्रकृति जन्य पदार्थों में कहीं आपकी आसक्ति है तो आपके जीवन में दुःख है। जब प्रकृति के पदार्थों से अगर आप हट जाते हैं तो जीवन में आपको कभी दुःख नहीं मिलता। जैसे सूरज के पास अंधकार नहीं रहता और राहु के पास प्रकाश नहीं। राहु के पास जाएंगे तो आपको केवल अंधकार ही मिलेगा और सूरज के पास जाएंगे तो केवल प्रकाश मिलेगा। इसी तरह यदि आप प्रकृति,अविद्या माया से जुड़ते हैं तो आपको जीवन में दुःख मिलते रहेंगे और प्रकृति अर्थात् अविद्या माया से मन को हटाकर परमात्मा से जोड़ दीजिए, आपके जीवन में सदा सुख रहेगा। गोस्वामी श्री तुलसी दास जी महाराज ने अपना अनुभव लिखा है कि दुनियां में हर व्यक्ति को अपने से आगे वाला सुखी नजर आता है। हर व्यक्ति गरीब की दृष्टि में धनवान और सुखी है। और धनवान की दृष्टि में बड़े पदाधिकारी सुखी हैं। गरीब कहें धनवान सुखी, धनवान कहें सुख राजा को भारी। राजा कहे चक्रवर्ति सुखी, चक्रवर्ति कहे सुख इन्द्र को भारी। इन्द्र कहें चतुरानन सुखी, चतुरानन कहें सुख विष्णु को भारी। तुलसीदास विचारि कहें हरि भजन विना सब जीव दुःखारी श्री गोस्वामी तुलसीदास जी का अंतिम निर्णय है कि आप पूर्ण सुखी होना चाहते हैं तो पूर्ण रूप से परमात्मा पर आधारित हो जाइए, समर्पित हो जाइए। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना। श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कालोनी, दानघाटी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)।