काम की खबर। मकर संक्रांति के दिन महा पुण्यकाल में गंगा स्नान का बड़ा महत्व है। धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक, महा पुण्यकाल में गंगा स्नान स्वर्ग में स्नान के समान माना गया है। जो लोग माघ मेले में हैं, गंगा के किनारे हैं या फिर मकर संक्रांति पर गंगा स्नान के लिए जाने वाले हैं, वे लोग मकर संक्रांति पर गंगा स्नान करके पुण्य लाभ प्राप्त कर लेंगे। लेकिन जो लोग घर पर ही मकर संक्रांति का स्नान करने वाले हैं, वे गंगा स्नान का लाभ कैसे प्राप्त कर सकते हैं, जिससे उनके भी पाप धुल जाएं और वे भी पुण्य को प्राप्त कर सकें।
माघ महीने में संगम पर स्नान कर लेने से मोक्ष और विष्णु कृपा दोनों ही प्राप्त होता है। मकर संक्रांति का स्नान माघ का बड़ा स्नान है। सभी लोगों को मकर संक्रांति पर गंगा स्नान का सौभाग्य तो नहीं प्राप्त हो सकता है, लेकिन गंगा मोक्ष देने वाली हैं। आप अपने घर पर ही मकर संक्रांति के दिन विधिपूर्वक स्नान करके गंगा स्नान का लाभ और पुण्य प्राप्त कर सकते हैं। आइए इसके बारे में जानते है।
घर पर मकर संक्रांति का स्नान-
मकर संक्रांति के प्रात:काल जब महा पुण्यकाल हो तो उस समय आप नहाने के पानी में थोड़ा सा गंगाजल और काला तिल मिला लें। फिर आप नीचे दिए गए दो मंत्रों में से किसी भी एक का उच्चारण करके स्नान प्रारंभ कर दें।
- गंगे च यमुने चैव गोदावरी सरस्वति।
नर्मदे सिन्धु कावेरी जलऽस्मिन्सन्निधिं कुरु।। - ॐ अपवित्र: पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोपि वा।
य: स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स: बाह्याभंतर: शुचि:।।
गंगा जल की बूंदें जल को अपने समान कर देती हैं यह वही गंगा हैं, जिन्होंने अपने स्पर्श मात्र से भगीरथ के 60 हजार पूर्वजों को मोक्ष प्रदान किया था। मकर संक्रांति के मौके पर गंगासागर में भी स्नान का बड़ा महत्व है।
स्नान के लिए शुभ समय :-
14 जनवरी की रात सूर्य देव मकर राशि में प्रवेश कर रहे हैं। उसके बाद 15 जनवरी को सुबह से स्नान दान प्रारंभ हो जाएगा। मकर संक्रांति के दिन स्नान के लिए महा पुण्यकाल सुबह 07 बजकर 17 मिनट से सुबह 09 बजकर 04 मिनट तक है। इस महा पुण्यकाल में सभी को स्नान कर लेना चाहिए।
हालांकि मकर संक्रांति का पुण्य का सुबह 07 बजकर 17 मिनट से शाम 05 बजकर 55 मिनट तक रहेगा। स्नान और दान के लिए सुबह का समय अच्छा माना गया है।
पूजा और दान :-
स्नान के बाद सूर्य देव की पूजा करें। उनको लाल फूल, काला तिल, लाल चंदन, जल आदि अर्पित करें। सूर्य चालीसा का पाठ करें और आरती करें। फिर काला तिल, गुड़, अनाज, कंबल, वस्त्र आदि का अपनी क्षमता के मुताबिक दान करें।