रोचक जानकारी। सौरमंडल में सबसे अधिक सुर्य का सभी ग्रहों पर प्रभाव रहता है। किसी भी ग्रहीय तंत्र में केंद्रीय तारा ही सबसे प्रभावशाली पिंड होता है और उसी के गुरुत्व के प्रभाव के वजह से ही तंत्र के ग्रह अपने तारे का चक्कर लगाते हैं। तथा पास के ग्रहों की और पास आ जाने की संभावना भी होती है जो ग्रह के भार और तारे से उसकी दूरी पर निर्भर करता है। लेकिन सूर्य जैसे तारे पास होते हुए ही बुध जैसे ग्रह उसकी गर्मी से पिघलते क्यों नहीं हैं या ग्रहीय तंत्र के गैसीय ग्रह भी गर्म हो कर उड़ते क्यों नहीं हैं। तो चलिए जानते है कि इस बारे में विज्ञान क्या कहता है ?
ग्रह तंत्र की प्रक्रिया – ग्रहों की तंत्र एक स्थिति नहीं अपितु एक प्रक्रिया का बिंदु होता है। पहले एक तारा बनता है फिर उसके आसपास धूल और बाद की चक्रिका या डिस्क बनती है और उससे धीरे धीरे बड़े पिंड बनते हैं जो ग्रह और तंत्र के अन्य पिंडों का निर्माण करते हैं। तारे और ग्रहों के भार और उसके बीच गुरुत्वाकर्षण के असर से एक संतुलन सा बनता है जिसे हमें सौरमंडल और ग्रहीय तंत्र कहते हैं।
गुरुत्व का प्रभाव – ग्रह तंत्र में ग्रहों का अपने तारे का चक्कर लगाने लगते हैं। कुछ ग्रह तारे के बहुत पास होते हैं तो कुछ बहुत दूर होते हैं। लगता है कि यह तंत्र चिरकालीन स्थायी होगा, लेकिन ऐसा होता नहीं है। तारे अपनी अंदर की प्रक्रियाओं के द्वारा अपना भार कम कर रहा होता है, और बहुत ही धीरे धीरे उसका गुरुत्व का प्रभाव कम होता है।
ग्रह तंत्र मे पास के ग्रह – वहीं ग्रहों जो तारे के पास होते हैं। वे तारे या सूर्य से बहुत ज्यादा गर्मी पाते हैं। मानो जैसे कि वो सूर्य की गर्मी से पिघल सकते हैं। अपने तारे के पास के ग्रह यदि छोटे हों जैसा कि सौरमडंल में सूर्य और बुध के साथ है। वे पथरीले ग्रह होते हैं। लेकिन बहुत ज्यादा गर्म होने के बाद भी ये पथरीले ग्रह पिघलते नहीं हैं। जैसा कि बुध ग्रह अभी तक नहीं पिघला है।
तारा भी कितना गर्म है – ग्रह का तापमान ना केवल अपने तारे की दूरी पर निर्भर करता है, बल्कि तारे की उम्र अर्थात इस पर भी निर्भर करता है कि तारा खुद कितना गर्म है। खुद हमारी गैलेक्सी मिल्की वे में 80 फीसद तारे लाल बौने ग्रह हैं। ऐसे में उनके ग्रह तंत्र में बुध के आकार के ग्रह की स्थिति भी उतनी गर्म नहीं होगी जितना की हमारे सौरमंडल में है।
कितनी गर्मी होती है बुध पर – सूर्य की गर्मी बुध की पथरीली सतह को इतना गर्म नहीं कर पाती है कि उससे वह पिघल जाए। बुध का हिस्सा जो सूर्य की ओर होता है तो उसकी सतह का तापमान करीब 430 डिग्री सेल्सियस होता है,जबकि पानी की भाप में बदलने के लिए 100 डिग्री का तापमान ही काफी होती है। ऐसे मे 430 डिग्री का तापमान तो सीसा तक पिघला सकता है।
तो क्यों पिघलता नहीं बुध – पत्थर किसी धातु की तरह नहीं होते हैं उन्हें पिघलने के लिए कुछ ज्यादा ही तापमान की जरूरत होती है और वैसे भी बुध सीसे जैसी किसी भी धातु से नहीं बना है। वह ऐसा पथरीले पदार्थों से बना है जिनका गलन बिंदु 600 डिग्री सेल्सियस है। मतलब यह साफ है कि सूर्य के पास होने के बावजूद उसकी सतह के पिघलने के लिए काफी नहीं है।
लेकिन क्या होता अगर सूर्य की गर्मी से तापमान 600 डिग्री सेल्सियस या उससे भी ज्यादा होता। यह कोई अनोखी बात नहीं होती क्योंकि हमारी गैलेक्सी में भी ऐसे तंत्र हैं जहां ग्रहों की ऐसी स्थिति है। बल्कि कई ग्रह तो ऐसे हैं जहां सिर्फ गर्म गैस है और जल्दी ही वे अपने तारे में समाने वाले भी है क्योंकि वे तारे के बहुत ज्यादा पास आ चुके हैं तो वहीं कुछ ग्रहों पर उबलते लावा के महासागर हैं।