राजस्थान/पुष्कर। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि भगवान शंकर की पूजा ज्योति की पूजा है। शिव की पूजा से समस्त चेतन तत्व की पूजा हो जाती है। प्रकृति जड़ है और परमेश्वर चेतन है। जैसे एक प्रकृति से अनेक शरीर बनते रहते हैं, उसी प्रकार एक चेतन तत्व से जीवात्मायें विभिन्न शरीरों में प्रवेश करती रहती हैं। पंचमहाभूत पाँच ही है लेकिन उन पांच महाभूतों से अरबों खरबों शरीर बनते हैं। बनने के बाद मिटकर प्रकृति में ही लीन हो जाते हैं। एक प्रकृति से अनेक शरीर बनते हैं। एक शुद्ध चेतन शिव तत्व से ही सबके अंदर चेतना जागृत होती है। श्रीशिवमहापुराण का सिद्धांत यही है, प्रायः सभी शास्त्रों से इस बात को माना है कि आत्मा परमात्मा का ही स्वरूप है।
अपनी आत्मा को शिव के रूप में, ब्रह्म के रूप में, तत्व के रूप में समझ लेना ही जीवन की सबसे बड़ी सफलता है। मैं वही हूं, यह सबसे ऊंचा सिद्धांत है। ब्रह्मैव आत्मा, ब्रह्म ही आत्मा है और आत्मा ही ब्रह्म है। जैसे पानी ही बर्फ है और बर्फ ही पानी है। पानी ही शीत के संयोग से बर्फ बन गया और बर्फ गर्मी के संयोग से पानी बन गया। इसी प्रकार हमारी और आपकी आत्मा परमात्मा ही है। परमात्मा का स्वरूप ही है ,यह भाव जब दृढ़ हो जायेगा, तब आपका भजन कभी नहीं छूटेगा। क्योंकि पर से स्नेह स्थाई नहीं होता और स्वयं से स्नेह कभी कम नहीं होता। यह बात बुद्धि में बिठा लेनी चाहिए। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना। श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कालोनी, दानघाटी,बड़ी परिक्रमा मार्ग,गोवर्धन,जिला-मथुरा,(उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)