पुष्कर/राजस्थान। परमपूज्य महामंडलेश्वर श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि कर्म करना, कर्तव्य बुद्धि से ईश्वर के लिए कर्म करना, कर्तृत्त्व का अभिमान नहीं जोड़ना। जो अपना निश्चित कर्म कर रहा है, फल की इच्छा नहीं रखता है, हिमालय में बैठे योगी को जो पदवी मिलेगी, उसे घर में रहते हुए अपने कर्तव्य का पालन करने वाले को भी वही गति मिल सकती है। यदि वह कर्तव्य बुद्धि से कर्म करता है, दोषों से बचा रहता है, आसक्ति और फल की इच्छा से रहित होकर कर्म करता है, वह योगी है, वह सन्यासी है।
श्रीमद्भागवद्गीता के प्रथम मंत्र में ‘कुरुक्षेत्र’ लेकिन पहले धर्मक्षेत्र है फिर कुरुक्षेत्र है। इसका मतलब है- धर्म करो और जो भी कर्म करो, धर्म बुद्धि से करो। जो भी कर्म करो कर्तव्य बुद्धि से करो। इसीलिए धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे आता है। भगवान श्री कृष्ण कहते हैं कि सब कुछ छोड़कर सन्यासी बनने के बजाय अगर कर्म करता हुआ व्यक्ति फल की इच्छा छोड़ दे तो वह घर में रहता हुआ भी संन्यासी है।
भगवान श्री कृष्ण कह रहे हैं, हे अर्जुन! जो मैं तुझे यह ज्ञान कुरुक्षेत्र में सुना रहा हूं, सृष्टि के आरंभ में यही ज्ञान मैंने पहले सूर्य को सुनाया था और सूर्यदेव ने यह ज्ञान अपने पुत्र मनु को दिया। और मनु ने यही ज्ञान अपने पुत्र इक्ष्वाकु को दिया। उन्होंने अपने पुत्र को दिया। चलते-चलते यह ज्ञान लुप्त होने लगा था इसीलिए तुम्हें निमित्त बनाकर, मैं यह गीता का ज्ञान फिर से संसार को दे रहा हूं ।और यह ज्ञान जिसके हृदय में निवास करेगा, वह सूर्य की तरह चमकेगा। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना। श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कालोनी, दानघाटी,बड़ी परिक्रमा मार्ग, गोवर्धन,जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)