Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि मुक्ति की नहीं बल्कि ईश्वर से प्रेम की आकांक्षा-भगवान का भक्त प्रार्थना करते हुए कहता है कि मुझे धन नहीं चाहिए, न मित्र, न सौंदर्य, न सम्पत्ति, न विद्वता, मुक्ति भी नहीं। यदि प्रभु आपकी इच्छा हो तो मेरे लिये हजार दुःख भेजना, पर यह वरदान दो कि मैं आपकी भक्ति कर सकूं और भक्ति के लिए भक्ति कर सकूं। भक्ति साधन भी है और भक्ति साध्य भी है। ईश्वर की भक्ति पाने के बाद कुछ पाना शेष नहीं रहता।
ईश्वर से वह प्रेम जो भौतिकता पारायण मनुष्य का अपनी सांसारिक सम्पत्ति के प्रति होता है वह तीव्र प्रेम प्रभु मेरे हृदय में आ जाय, पर केवल परम सुन्दर ईश्वर के लिये। मान लो एक कमरे में सोने की एक थैली है, और दूसरे कमरे में चोर, और यह बात चोर को पता है, क्या वह चोर शांति से सो सकेगा? निश्चय ही नहीं, वह सारे समय यही सोचने में पागल रहेगा कि सोने की थैली तक कैसे पहुंचूं।
उसी प्रकार यदि कोई मनुष्य ईश्वर से सच्चा प्रेम करता है तो वह किसी दूसरी वस्तु से प्रेम कैसे कर सकता है? ईश्वर के उस प्रबल प्रेम के सामने कुछ और ठहर कैसे सकता है? सब गायब हो जायेगा। उसका मन प्रभु प्रेम को पाने के लिए, उसे साकार करने के लिये, उसे अनुभव करने के लिये, उसमें रहने के लिये पागल हुए बिना कैसे रह सकता है? हम सबका प्रेम तो सिर्फ ईश्वर है, और ईश्वर ही प्रेम है। हम सबके मन में ईश्वर के प्रति ऐसा भाव होना चाहिये, ऐसा प्रेम होना चाहिए। सभी हरि भक्तों को पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धनधाम आश्रम से साधु संतों की शुभ मंगल कामना, श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कॉलोनी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, दानघाटी, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवा ट्रस्ट, गनाहेड़ा, पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)।