Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि श्रीमद्भागवद्गीता में शरीर को क्षेत्र और आत्मा को क्षेत्रज्ञ कहा है। धर्म क्षेत्र कहा है। इसलिए यह शरीर धर्म करने के लिये मिला है। धर्माचरण करने के लिये यह क्षेत्र मिला है। इसीलिए चौरासी लाख योनियों में भटकते-भटकते धर्म की ओर आगे बढ़ना चाहिये। इसीलिए बाली ने भगवान श्री राम के पास मुक्ति नहीं मांगी, मांगा है जो शरीर मिले आपके चरण भक्ति के लिये मिले।
अब नाथ करि करुना बिलोकहू देहु जो बर मागऊँ।
जेहि जोनि जन्मौं कर्म बस तहँ राम पद अनुरागऊँ।।
जीवन में जितना प्रेम बढ़ता चला जायेगा। जितनी चेतना, विकास की ओर बढ़ती चली जायेगी, उतने करुणा और प्रेम बढ़ते चले जायेंगे।
शिष्य की शरणागति को सद्गुरु पहले देखते हैं, बाद में ही आदेश देते हैं। उसके पहले वह उपदेश देते हैं। आदेश कब दिया जाता है? जब गुरु को विश्वास हो जाता है कि आदेश का उल्लंघन नहीं होगा, तभी आदेश देते हैं। इसीलिए आप गीता में देखेंगे कि क्रमशः अर्जुन के प्रति भगवान श्री कृष्ण के वचन
आदेशात्मक बनते जाते हैं और अर्जुन भी याचना करता है कि हे भगवान! मेरा मार्गदर्शन कीजिये, मुझे आदेश दीजिये, उपदेश करिये। सभी हरि भक्तों को पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धनधाम आश्रम से साधु संतों की शुभ मंगल कामना, श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कॉलोनी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, दानघाटी, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवा ट्रस्ट, गनाहेड़ा, पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान).