Business Diary: रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति की बैठक, 8 जून को आएगा फैसला

reserve bank mpc meeting: भारतीय रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति  की आज मंगलवार से बैठक शुरू हो रही है। आपको बता दे कि ये बैठक प्रत्येक दो महीने के अंतराल पर की जाती है। वहीं इस बार के बैठक में नीतिगत ब्याज दरों में बदलाव पर चर्चा की जाएगी। अप्रैल महीने में हुई पिछली बैठक में नीतिगत ब्याज दरों या रेपो रेट में बदलाव नहीं किया गया था। लेकिन आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास ने उस दौरान कहा था कि ये फैसला बस इस मीटिंग के लिए लिया गया है और जरूरी नहीं है कि ब्याज दरों को आगे भी इसी तरह रखा जाए। जरूरत पड़ने पर इसे फिर से बढ़ाया भी जा सकता है। ऐसे में ये देखना होगा कि इस जून महीने की एमपीसी मीटिंग में रेपो रेट पर केंद्रीय बैंक क्‍या फैसला लेता है।

अपरिवर्तित रह सकता है रेपो रेट

वहीं आर्थिक जगत के जानकारों का कहना है कि केंद्रीय बैंक इस बार की मौद्रिक नीति समिति की बैठक में भी रेपो रेट को अपरिवर्तित रख सकता है। आरबीआई फिलहाल महंगाई को कम करने की कोशिशों में जुटा है और उसमें सफलता भी मिली है। एमपीसी की पिछली बैठक के बाद से इस बात के कयास लगाए जा रहे हैं कि आरबीआई फिलहाल ब्याज दरों को स्थिर रखकर अगले वित्तवर्ष इसमें कमी करना शुरू कर सकता है।

फरवरी महीने में 6.5 प्रतिशत पर स्थिर रखा गया था रेपो रेट

मई 2022 से फरवरी 2023 तक RBI ने रेपो रेट में 2.50% की बढ़ोतरी की गई थी। अप्रैल में हुई मीटिंग में रेपो रेट में कोई बदलाव नहीं किया गया था और इसे 6.50% पर स्थिर रखा गया। लागतार छह बार रेपो रेट बढ़ाने के बाद अप्रैल में इसे 6.5 फीसदी पर अपरिवर्तित रखा गया। फिलहाल रिवर्स रेपो रेट 3.35%, बैंक रेट 5.15% और मार्जिनल स्टैंडिंग फैसिलिटी रेट 6.75% पर है।

क्या है रेपो रेट और रिवर्स रेपो रेट?

  • रेपो रेट –  रेपो रेट वह दर होती है जिस पर RBI बैंकों को कर्ज देता है। बैंक इस कर्ज से ग्राहकों को लोन देते हैं। रेपो रेट कम होने का मतलब है कि बैंक से मिलने वाले कई तरह के कर्ज, जैसे होम लोन, कार लोन इत्यादि सस्ते हो जाएंगे। वहीं अगर रेपो रेट बढ़ाया जाता है तो इस तरह के लोन ग्राहकों के लिए महंगे हो जाएंगे।
  • रिवर्स रेपो रेट –  वहीं रिवर्स रेपो रेट, रेपो रेट से उलट होता है। यह वह दर होती है जिस पर बैंकों को उनकी ओर से आरबीआई में जमा राशि पर ब्याज मिलता है। रिवर्स रेपो रेट बाजार में नकदी की तरलता को नियंत्रित करने में काम आती है। बाजार में जब भी बहुत ज्यादा नकदी दिखाई देती है, आरबीआई रिवर्स रेपो रेट बढ़ा देता है, ताकि बैंक ज्यादा ब्याज कमाने के लिए अपनी रकम उसके पास जमा करा दें।

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