Varanasi News: दुनिया के प्राचीन शहरों में से एक है वाराणसी। जिससे भगवान भोलेनाथ की नगरी काशी के नाम से भी जाना जाता है। वहीं एक बार एक अंग्रेजी लेखक मार्क ट्वेन ने लिखा था कि बनारस इतिहास और परंपरा से भी पुराना है, यहां तक कि किंवदंतियों से भी पुराना है।
आपको बता दें कि आज हम ‘वाराणसी’ का आज 67वां जन्मदिवस हैं कि क्योंकि आज ही के दिन यानी 24 मई 1956 को वाराणसी का आधिकारिक नाम स्वीकार किया गया था। जबकि उससे पहले वाराणसी को बनारस, काशी अस्सी आदि नामों से जाना जाता था। इसका वर्तमान स्वरूप भले ही प्राचीनता संग कुछ आधुनिकता लिए हो मगर पुरानी कथाएं इसकी भव्यता की कहानी स्वयं कहती हैं।
पद्यपुराण में भी दक्षिण-उत्तर में वरुणा और अस्सी नदी का जिक्र है। मत्स्यपुराण में वाराणसी का वर्णन करते हुए कहा गया है कि वाराणस्यां नदी पु सिद्धगन्धर्वसेविता। प्रविष्टा त्रिपथा गंगा तस्मिन् क्षेत्रे मम प्रिये। इसके अतिरिक्त भी विविध धर्म ग्रंथों में वाराणसी, काशी और बनारस सहित यहां के पुराने नामों के दस्तावेज मौजूद हैं।
जानकारी के लिए बता दें कि सन 1965 में इलाहाबाद के सरकारी प्रेस से प्रकाशित गजेटियर में कुल 580 पन्ने हैं। यह आइएएस अधिकारी श्रीमती ईशा बसंती जोशी के संपादकीय नेतृत्व में प्रकाशित किया गया था। सरकार द्वारा दस्तावेजों को डिजिटल करने के तहत सन 2015 में इसे आनलाइन किया गया।
हर शहर का अपना इतिहास और जियोग्राफी होती है। लेकिन आधिकारिक नाम गजेटियर और दस्तावेजों में दर्ज होना जरूरी होता है। वाराणसी का नाम भी दस्तावेज में दर्ज होने के बाद से आधिकारिक हुआ। हांलाकि अभी भी लोगों की जुबां पर काशी और बनारस का नाम चढ़ा है लेकिन जिले का आधिकारिक नाम वाराणसी ही है।
देवाधिदेव महादेव और पार्वती का निवास, वाराणसी की उत्पत्ति के बारे में अभी तक किसी के पास सटीक जानकतारी नहीं है। लेकिन ये मान्यता है कि काशी की धरती पर मरने वाला जन्म और पुनर्जन्म के चक्र से मुक्ति प्राप्त करता है। बनारस 3000 से अधिक वर्षों से सभ्यता का केंद्र है।
वहीं विश्वप्रसिद्ध सारनाथ के बारे में तो लगभग सभी लोग जानते ही होगें। यहीं भगवान बुद्ध ने आत्मज्ञान के बाद पहला उपदेश दिया था। वाराणसी शिक्षा का भी केंद्र रहा है। यहां संस्कृत, योग, अध्यात्मवाद और हिंदी भाषा फला फूला है। नृत्य और संगीत के लिए भी बनारस दुनिया में जाना जाता है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध सितार वादक रविशंकर और उस्ताद बिस्मिल्लाह खान सभी इसी शहर के पुत्र हैं।