राजस्थान/पुष्कर। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि रामायण से जीना सीखें, भागवत् से मरना सीखें। श्रीमद्भागवत में श्री शुकदेव जी महाराज ने मरना सिखाया है। श्रीमद्भागवत में मृत्यु के पूर्व सूचना दो व्यक्तियों को मिलती है। एक परीक्षित और दूसरे राजा कंस। लेकिन मृत्यु की पूर्व सूचना मिलने पर भी उन दोनों ने क्या किया। यही दैवी और आसुरी प्रकृति का परिचय है। राजा कंस तो मृत्यु से बचने का उपाय खोजते फिरते है, जबकि परीक्षित सब कुछ छोड़ कर चले जाते हैं गंगा जी के तट पर साधु-संतों की शरण में। मृत्यु तो जीवन का अनिवार्य सत्य है। यह अनिवार्य है तो मुझे मरना सिखाइये। मैं ऐसे मरूं कि मुझे फिर किसी दूसरे उदर में आना ही न पड़े। मृत्यु की परीक्षा में जो एक बार पास हो जाता है उसे दुबारा परीक्षा नहीं देनी पड़ती। जो परीक्षा में उत्तीर्ण हुआ है, उसे बार-बार जन्म धारण नहीं करना पड़ता है। मरना वही सीख पाये हैं, जो जन्म मरण के फेरे से छूट गये हैं। अतः मरना सीखने का अर्थ है, मुक्ति, जन्म-मरण के चक्कर से छुटकारा। रामायण इसी प्रकार जीना हमें सिखाती है और भागवत मरना सिखाती है। जीवन में क्या नहीं करना चाहिए यह हमें महाभारत सिखाता है, तीनों ही अद्भुत ग्रंथ हैं। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं नवनिर्माणाधीन गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना- श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)।