भौतिक कामनाएं ही है पुनर्जन्म का कारण: दिव्य मोरारी बापू

राजस्थान/पुष्कर। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि भौतिक कामनाएं ही पुनर्जन्म का कारण है। जब चित्त में सांसारिक कामना न रह जाय, केवल परमार्थिक कामना रह जाय, तब वह उसका आखरी जन्म होता है। जीवन में कोई दिन ऐसा आवे कि अब हमको कुछ नहीं चाहिए, कोई सांसारिक कामना नहीं है और ईश्वर प्राप्ति की इच्छा मन में उत्पन्न हो जाय तो समझ लेना चाहिए यह हमारा आखरी जन्म है। जीव जब तक ईश्वर को प्राप्त नहीं कर लेता, तब तक इसके जन्म और मृत्यु का चक्कर छूटता ही नहीं। जैसे- गेहूं या चना खेत में डाला उत्पन्न हुआ बीज बना, फिर वृक्ष बना, बीज से वृक्ष और वृक्ष से बीज। यह वीजांकुर न्याय है। इसी तरह से हमारा आपका जीवन है, हम लोग कर्म करते हैं, उसके फल की इच्छा रखते हैं, इस जन्म में अगर हमें कर्म का फल नहीं मिला तो उसको भोगने के लिए हमको दूसरा जन्म लेना पड़ेगा। और दूसरा जन्म लेकर हम कर्मफल प्राप्त करेंगे तो नए कर्म फिर बन जाएंगे। नये कर्म बनेंगे तो उनको भोगने के लिए नया शरीर लेना पड़ेगा। इस तरह से पुनरपि जन्मं पुनरपि मरणं पुनरपि जननी जठरे शयनं। इह संसारे खलु दुस्तारे कृपया पारे पाहि मुरारे।। श्री गणेश महापुराण में वर्णन हैं कि पहले हमें आपके अंदर श्रद्धा जगानी चाहिए। श्रद्धा किसे कहते हैं, गुरु और शास्त्र के वचनों पर प्रत्यक्ष की तरह विश्वास हो जाना इसी को श्रद्धा कहते हैं। जैसे जिस वस्तु को हमने देख लिया अब कोई कहे कि यह नहीं है तो हम नहीं मानेंगे। प्रत्यक्ष देखी हुई वस्तु को हम प्रमाण मान लेते हैं। इसी तरह शास्त्र और गुरु के वचनों को अंतिम प्रमाण मानना श्रद्धा कहलाता है। श्रद्धा और विश्वास से ही सत्य का साक्षात्कार होता है। शास्त्र यह कहते हैं कि हम अनादि काल से भवाटवी में भटक रहे हैं। कर्म करते हैं, तो फल भोगने के लिए जन्म लेना पड़ता है और जन्म लेते हैं, तो फिर नए कर्म शुरू हो जाते हैं और उन कर्मों का फल भोगने के लिए फिर जन्म ले लेना पड़ता है। सन्यास क्यों लिया जाता है, इसलिए लिया जाता है कि नये कर्म करेंगे नहीं, (परमार्थ भाव से किया गया कर्म, जहां स्वार्थ लेश मात्र नहीं है, फल की आशा है ही नहीं, उसको कर्म की श्रेणी में नहीं माना जाता है।) नये कर्म करेंगे नहीं पुराने को भजन से काट देंगे। पुराने कट गए नए बने नहीं तो मुक्ति हो गई। जन्म मृत्यु का चक्कर खत्म हो गया। छोटीकाशी बूंदी की पावन भूमि, श्री सुदामा सेवा संस्थान (वृद्धाश्रम) का पावन स्थल, चातुर्मास का पावन अवसर, पूज्य महाराज श्री-श्री घनश्याम दास जी महाराज के पावन सानिध्य में श्री गणेश महापुराण के पंचम दिवस भगवान गणेश के प्राकट्य की कथा का वर्णन किया गया, उत्सव महोत्सव मनाया गया। कल की कथा में उपासना खंड में भगवान गणेश के अन्य चरित्रों की कथा होगी।

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