राजस्थान/पुष्कर। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि हम बड़ी बड़ी कोठी बना लेते हैं, अच्छे-अच्छे फर्नीचर बना लेते हैं, सोफासेट होता है, टी0वी0 सेट होता है, सब कुछ सेट होता है, लेकिन व्यक्ति खुद अपसेट होता है। लोगों के पास शान्ति नहीं है, तब यह पूछने का मन होता है कि वास्तव में क्या तुम्हें शान्ति चाहिए। वास्तव में शान्ति की भूख है या बातें ही बना रहे हो कि शान्ति चाहिए। यदि व्यक्ति को शान्ति चाहिए तो उसको शान्त होने से कोई रोक नहीं सकता, क्योंकि शान्ति के लिए कुछ करना नहीं पड़ता, सिर्फ जो कर रहे हो बन्द कर दो। बस शान्ति ही शान्ति। झूले पर झूल रहे हो और पैर से ठेका लगा रहे हो तो ठेका लगाना बंद कर दो, झूला अपने आप शांत हो जायेगा, क्योंकि हम ठेका लगा रहे हैं, इसलिए झूला चल रहा है। इस प्रकार शांति के लिए कुछ भी करना नहीं पड़ता। जो कर रहे हो उसे बंद करना होगा, क्योंकि स्वरूप से तो व्यक्ति शांत ही है। मृत्यु अवश्यम्भावी है। एक दिन तो काल का आक्रमण होगा ही। सातों दिनों में-से कोई एक दिन आपकी मृत्यु के लिए निश्चित है। इसलिए राजा परीक्षित की तरह काल को न भूलो। मृत्यु कब होगी, इस पर विचार मत करो। मृत्यु का अर्थ है- जीवन का हिसाब बताने का दिन। मृत्यु का सुधार- आंख, मन, वाणी एवं धन का सदुपयोग करने से होता है। मृत्यु के भय से भगवान् में प्रीति बढ़ती है। मृत्यु के लिए प्रतिक्षण तैयार रहो। जीवन ऐसा जियो कि तुम सावधान रहो और मृत्यु आये। मृत्यु को सुधारना हो तो प्रत्येक क्षण को सुधारो। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं नवनिर्माणाधीन गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना-श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)।