आगरा। आजादी से पहले शुरू हुआ फतेहपुर सीकरी का दरी उद्योग आज दस हजार बुनकर परिवारों की आजीविका चला रहा है। यहां हाथ से बनी दरियां जर्मनी, फ्रांस और यूरोप के अन्य देशों तक में घरों की शोभा बढ़ा रही हैं। शुरुआत में यहां सूत से दरियां और फर्श बनते थे। अब कपड़े और हौजरी की कतरन से दरी तैयार होती है। पुश्तों से लोग इस व्यवसाय से जुड़े हैं। शहर से करीब 35 किमी दूर फतेहपुर सीकरी कस्बे के सीकरी दो हिस्सा, सौनोटी, नगला जन्नू, जहानपुर, मई बुजुर्ग, जौताना सहित 12 से अधिक गांवों के घर-घर में दरी बनाई जाती है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर पत्थरों के खनन पर लगी रोक के बाद लोग इस पेशे से और जुड़े है। हालांकि अधिकांश परिवारों में यह पेशा आजादी के पहले से चला आ रहा है। पिछले करीब 30 वर्षों के दौरान यह उद्योग फतेहपुर सीकरी की पहचान बन गया है। हौजरी के वेस्ट से यह दरियां तैयार होती हैं। सभी काम हाथों से ही किया जाता है।