राजस्थान/पुष्कर। परम् पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि श्री शिवमहापुराण, कोटि रुद्र संहिता, द्वादश ज्योतिर्लिंग की कथा-सौराष्ट्रे सोमनाथं च, श्रीशैले मल्लिकार्जुनं। उज्जयिन्यां महाकालं, कारममल्लेश्वरम।। परल्यां वैद्यनाथं च, डाकिन्यां भीमशंकरम्। सेतुबन्धे तु रामेशं,नागेशं दारूकावने।। वाराणस्यां तु विश्वेशं, त्र्यम्बकं गौतमीतटे। हिमालये तु केदारं घुसृणेशं शिवालये।।
एतानि ज्योतिर्लिंगानि, सायं प्रातः पठेन्नरः। सप्त जन्म कृतं पापं स्मरणेन विनश्यति।। द्वादश ज्योतिर्लिंग, एकादश रुद्र, अष्ट वसु, दो अश्विनी कुमार, ये तैंतीस कोटि देवताओं के स्वरूप हैं। जीवन में एक बार द्वादश ज्योतिर्लिंग का दर्शन करना चाहिए, चार धाम की यात्रा करना चाहिए, फिर नित्य स्मरण करना चाहिए। ऐसा करने से सात जन्म तक के पाप नष्ट हो जाते हैं। तीर्थ यात्रा का यह विशेष फल है कि हम उसका नित्य स्मरण करें। मानसिक तीर्थ यात्रा और पूजन से नित्य तीर्थ यात्रा का फल मिलता है और जीव का मंगल होता है। प्रत्यक्ष पूजा से भी मानसिक पूजा की विशेष महिमा है, क्योंकि साधना में मन को ही भगवान में लगाना है, मानसिक पूजा में मन बिना भगवान में लगे पूजा हो नहीं सकती। द्वादश ज्योतिर्लिंग भारतवर्ष में चारों दिशाओं में है, इसका मतलब हम ऐसी पर भावना करें कि परमात्मा हमारे चारों तरफ हैं। इस भावना से हमारा व्यवहार सदैव पवित्र रहेगा और जीवन सफल होगा। छोटीकाशी बूंदी की पावन भूमि, श्री सुदामा सेवा संस्थान (वृद्धाश्रम) का पावन स्थल, चातुर्मास का पावन अवसर, महाराज श्री घनश्याम दासजी महाराज के पावन सानिध्य में कोर्ट रुद्रसंहिता का गान किया गया। चातुर्मास के ग्यारहवें दिवस से श्री गणेशपुराण ज्ञानयज्ञ का मंगलमय प्रारम्भ अनुष्ठान होगा।