राजस्थान/पुष्कर। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि केवल भगवान् की कृपा को ही देखना चाहिए। जो वस्तु अन्तःकरण से प्राप्त होती है, उसकी प्राप्ति के लिये अन्तःकरण शुद्ध करने की आवश्यकता है। परन्तु परमात्मा की प्राप्ति अन्तःकरण से नहीं होती, प्रत्युत विवेक को महत्व देने से होती है, अथवा उसकी प्राप्ति की उत्कट अभिलाषा होने से होती है। विवेक मनुष्य मात्र को प्राप्त है। अतः मनुष्य मात्र परमात्मा की प्राप्ति का अधिकारी है। सांसारिक वस्तुओं की प्राप्ति के सब अधिकारी नहीं है। इच्छा मात्र से सांसारिक वस्तुओं की प्राप्ति नहीं होती, प्रत्युतः पुरुषार्थ और प्रारब्ध से प्राप्ति होती है। परन्तु तीव्र इच्छा होने से परमात्मा की प्राप्ति हो जाती है। यदि परमात्मा की प्राप्ति की उत्कट अभिलाषा हो जाय तो अशुद्ध अंतःकरण वाले को भी परमात्मा की प्राप्ति हो सकती है। एक विशेष नियम है कि संसार की इच्छा पूरी होती ही नहीं। अतः अन्तःकरण शुद्धि की चिन्ता न करके परमात्मा की प्राप्ति की इच्छा को बढ़ायें, अवश्य लाभ होगा इसमें संदेह नहीं है। भगवान हमारे ऊपर कृपा करके हमें कई प्रकार से चेतावनी देते हैं। उनके सिखाने के कई ढंग हैं। हरेक परिस्थिति में उनकी कृपा भरी रहती है। जब परिस्थिति बदलती है, तब भगवान की विशेष कृपा होती है। जैसे मां कभी बालक को स्नेह करती है, कभी उसे मारती है, पर दोनों ही अवस्थाओं में मां का स्नेह ही रहता है। ऐसी भगवान् चाहे सुखदाई परिस्थिति भेजें, अथवा दुःखदाई परिस्थिति भेजें, दोनों में उनकी कृपा एक समान ही रहती है। अतः हमें उन परिस्थितियों को न देखकर केवल भगवान् की कृपा को ही देखना चाहिये। मनुष्य के एक और संसार है और दूसरी और परमात्मा है, बीच में मनुष्य है। अतः मनुष्य का खास काम है- संसार की सेवा करना और भगवान् को याद करना। इसी में मनुष्य की मनुष्यता है, मानव शरीर की सार्थकता है। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं नवनिर्माणाधीन गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना-श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)।