गाजीपुर। रविवार की सुबह विगत 4 जून को लखनऊ में दिवगंत हुए सेना के जवान अंकित सिंह का पार्थिव शरीर सेना के एबुंलेंस से उनके पैतृक गांव गहमर पहुँचा। सैनिक के अंतिम दर्शन हेतु शव को उनके पैतृक आवास पर रखा गया, जहां लोगो ने उनके अंतिम दर्शन किये। दर्शनोपरांत सुबह 11 बजे पूरे सैनिक सम्मान के साथ एवं हजारो की भीड़ के साथ
गहमर के नरवा घाट पर उनका अंतिम संस्कार हुआ तथा अंकित के छोटे भाई अंकुश सिंह द्वारा मुखाग्नि दी गई। इसके पूर्व सेना कमांड हास्पिटल लखनऊ से आये का. रकुबुद्दीन, अनूप पाण्डेय एवं गोरखा रेजिमेंट वाराणसी के नायब सुबेदार आर.एस.यादव एवं सी.एच.एम देवेन्द्र छत्री द्वारा सेना के तरफ से पुष्पचक्र अर्पित करते हुए अंकित से लिपटे तिरंगे को उनके परिवार को भेट किया गया।
जानकारी के मुताबिक अंकित सिंह (23) पुत्र अशोक सिंह भारतीय थल सेना के आर्मी मेडिकल कोर में 2015 में भर्ती होकर कुछ समय से कमांड हास्पिटल लखनऊ में कार्यरत थे, बीते 23 मई को बाइक से लखनऊ शहर में कही जाते समय सड़क दुर्घटना में घायल हो गए थे। लखनऊ में ही सैनिक अस्पताल में उनका इलाज चल रहा था। शुक्रवार की दोपहर इलाजरत अंकित (23) ने अपनी आखरी सांस ली।
इस घटना की सूचना के बाद पूरे गांव में शोक की लहर दौड़ गई। स्थानीय गांव के नरवा घाट पर रविवार को सैनिक अंकित सिंह का शव पहुँचते ही अंतिम दर्शन करने वालो का तांता लग गया। लोगो ने नम आंखों से गहमर के लाल अंकित सिंह को अंतिम बिदाई दी। लोग अंकित के मृदु व्यवहार की चर्चा करते रहे। श्रद्धांजलि देने वालो में जमानियां विधायक सुनीता सिंह, जिला पंचायत सदस्य विमला देवी, पूर्व मंत्री ओमप्रकाश सिंह के प्रतिनिधि मन्नु सिंह, ग्राम प्रधान बलवंत सिंह, पूर्व जिला पंचायत मनीष सिंह बिट्टू , आनन्द गहमरी, मिथिलेस गहमरी, फजीहत गहमरी, पिंटू सिंह, मुरली कुशवाहा, प्रमोद सिंह सहित स्थानीय गणमान्यजन शामिल रहे। बता दें कि विगत 23 मई को सैनिक अंकित सिंह के मोटरसाइकिल दुर्घटना में घायल होने के बाद से न जाने कितने देवी देवताओं से अपने सुहाग की भीख माँगने वाली उनकी पत्नी रोशनी सिंह की सारी उम्मीदे 04 जून को टूट गई। विवाह के मह़ज दो वर्ष बाद ही 21 वर्ष की उम्र में पति हाथ छुटा तो रोशनी बेसुध हो गई। अब पत्नी के आँखो से न आँसू निकल रहे थे न मुहँ से आवाजें, बस चेहरे पर उदासी और यही सवाल कि कैसे कटेगी अब जिन्दगीं तुम्हारे बिन। उसकी आंखों में बस एक ही सवाल था कि सात जन्मों का साथ निभाने का वादा किया था इतनी जल्द ही साथ छोड़ गए। वही पुत्र के वियोग में दहाड़े मार कर रोती माँ ज्ञान्ती देवी अपने पुत्र के शव से लिपट कर होश खो दे रही थी। उसके बचपन से लेकर आज तक की हर घटना, हर बातों का जिक्र कर शव से लिपट जा रही। जिसे देख कर हर तरफ आँसू और गम का माहौल रहा।