अध्यात्म विद्या होती है राज विद्या: दिव्य मोरारी बापू

राजस्थान/पुष्कर। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि श्रीमद्भगवद्गीता ज्ञानयज्ञ राजविद्याराजगुह्ययोग, विभूतियोग एवं विश्वरूपदर्शनयोग- भगवान कहते हैं- अर्जुन तू मेरा श्रद्धावान भक्त है। इसलिए मैं तुम्हें गुप्त से गुप्त उपदेश दे रहा हूं। ये समस्त विद्याओं में राजविद्या है। मनुस्मृति में मनु जी लिखते हैं- चाहे आप दस विषय से पीएचडी कर लो। अगर आपको अध्यात्म का ज्ञान नहीं है, तो आप शास्त्र की दृष्टि से अज्ञानी हैं। आपने कुछ भी नहीं पढ़ा पर आपको ईश्वर के बारे में जानकारी है, आत्मा के बारे में जानकारी है, आत्मा और परमात्मा के सम्बन्ध में जानकारी है, तो आप विद्वान हो। सा विद्या या विमुक्तये। विद्या वही है जो मुक्ति में हेतु बने, बाकी विद्यायें उदरपूर्ति की एक कला हैं। राजविद्या का मतलब समस्त विद्याओं में जो राजा विद्या है। अध्यात्म विद्या ही राजविद्या है। अर्जुन ने प्रश्न किया कि- प्रभु कौन सा गुप्त ज्ञान है? तब भगवान कहते हैं सुनो- मेरे दो रूप हैं, निराकार और साकार। साकार रूप से मैं तेरे सामने खड़ा हूं, पर निराकार रूप से सारे जगत के कण-कण में समाया हूं। जैसे- वर्फ के कण-कण में पानी समाया है, जैसे घड़े के कण-कण में मिट्टी समाई है, जैसे अंगूठी के कण-कण में सोना समाया है, इसी तरह जगत के कण-कण में तेरा कृष्ण छुपा हुआ है। भगवान के दो स्वरूप- निराकार और साकार। परमात्मा दो रूप कैसे हो गये? या निराकार हों या साकार हों। कहते हैं नहीं, परमात्मा विरुद्ध धर्माश्रय हैं। परमात्मा आकाश से भी बड़ा है और परमात्मा अणु से भी छोटा है। ये वेद में लिखा है।।अणोरणीयान् महतो महीयान। ईश्वर अणु से भी छोटा है और बड़े से भी बड़ा है।परमात्मा की कहीं भी उपासना, प्रणाम, ध्यान करें, परमात्मा वही है। ।।एकं सद् विप्रा बहुधा वदंति।। परमात्मा एक है, उनके अनेक रूप हैं और अनेक नाम है, लेकिन परमात्मा एक हैं। छोटीकाशी बूंदी की पावन भूमि, श्री सुदामा सेवा संस्थान वृद्धाश्रम एवं वात्सल्यधाम का पावन स्थल, पूज्य महाराज श्री- श्री घनश्याम दास जी महाराज के पावन सानिध्य में श्री दिव्य चातुर्मास महामहोत्सव में श्रीमद्भगवद्गीता ज्ञानयज्ञ के सातवें दिवस राजविद्या राजगुह्ययोग, विभूतियोग एवं विश्वरूपदर्शन योग की कथा का गान किया गया। कल भक्तियोग की कथा का गान किया जायेगा।

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