आत्मा की नहीं होती है मृत्यु: दिव्य मोरारी बापू
राजस्थान/पुष्कर। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि श्रीमद्भगवद्गीता ज्ञानयज्ञ द्वितीय-अध्याय-सांख्ययोग भगवान कहते हैं अर्जुन! ऐसा नहीं है कि- हम, तुम और ये राजा लोग पहले नहीं थे या आगे नहीं होंगे। क्योंकि आत्मा की मृत्यु होती ही नहीं। हम लोग पहले भी थे, आज भी हैं और आगे भी रहेंगे। आत्मा अजर अमर है। घटे भिन्नेऽयथाकाशः आकाशस्यात् यथा पूरा एवं देहे मृते जीवो ब्रह्म सम्पद्यते पुनः। इसी जीवन में व्यक्ति के दो शरीर बदल गये, बचपन बदल गया, आत्मा नहीं बदली। युवानी का शरीर बदल गया, लेकिन आत्मा नहीं बदली। बुढ़ापा आ गया। बचपन मरा, आत्मा नहीं मरी। जुवानी मरी आत्मा नहीं मरी। तो बुढ़ापा मरने पर आत्मा कैसे मरेगी? इसी जीवन में दो शरीर बदल गया। बचपन गया तब तो युवानी मिली। युवानी गयी तब तो बुढ़ापा मिला।
हंडी के दो चावल पक गये, इसका मतलब सारे पक गये। जब दो शरीर गया हम नहीं गये, तब तीसरा भी जायेगा, हम नहीं जाएंगे। वो धीर, वीर, समझदार व्यक्ति है। जो शरीर के बदलने पर शोक नहीं करता। धीरस्तत्र न मुह्यति। समझदार व्यक्ति इस विषय में मोहित नहीं होता। आत्मा कभी नहीं मरती, शरीर सदैव नहीं रहता। दुखिया नानक सब संसार। सोई सुखिया जिसे नाम आधार।। (गुरुवाणी) सकल सृष्टि को राजा दुखिया। हरि का नाम जपत सोई सुखिया। जो दीखै सो चालनहार। ता संग लपट रहयो संसार।जाकी सेवा नवनिधि पावै। तासन मूढ़ा मन नहिं लावै। छोटीकाशी बूंदी की पावन भूमि, श्री सुदामा सेवा संस्थान वृद्धाश्रम एवं वात्सल्यधाम का पावन स्थल, पूज्य महाराज श्री-श्री घनश्याम दास जी महाराज की पावन सानिध्य में- श्रीदिव्य चातुर्मास महामहोत्सव श्रीमद्भगवद्गीता ज्ञानयज्ञ के द्वितीय दिवस कथा में आत्मा के स्वरूप का वर्णन किया गया। कल की कथा में आगे सांख्ययोग का वर्णन किया जाएगा।