ईश्वर की सत्ता स्वीकार करना ही है आस्तिकता: दिव्य मोरारी बापू

पुष्कर/राजस्थान। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, ईश्वर की सत्ता स्वीकार करना ही आस्तिकता है। ”ईश्वरः अस्ति” अर्थात् ईश्वर है जो यह जानकर ईश्वर का भजन करता है, आस्तिक कहलाता है। आस्तिकता जीवन की विशेष उपलब्धि है। यदि ईश्वर की व्यापकता और सर्वज्ञयता का बोध हो जाये तो साधना पथ पर बढ़ना सरल हो जाता है। ईश्वर पर पूर्ण विश्वास होना ही आस्तिकता है। इसके विपरीत, ईश्वर की सत्ता का स्वीकार न करना नास्तिकता है। आस्तिकता हिंदू धर्म की प्रथम सीढ़ी है। आस्तिकताा मानव जीवन के निर्माण में, आध्यात्मिकता बनाये रखने में, भक्तिपथ में मूलभूत और महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। आस्तिक व्यक्ति ही ईश्वर और अपनी खोज में आगे बढ़ता है। माया ब्रह्म न आप कहँ जान कहिअ सो जीव। बंध मोक्ष प्रद सर्व पर माया प्रेरक सीव।। जग की सेवा खोज अपनी प्रीति प्रभु सों कीजिए, जिंदगी का राज है यह जानकर जी लीजिए। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना। श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कालोनी,
दानघाटी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश)
श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)

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