भगवान शंकर के साथ श्रीनरसीजी का नंदनंदन श्याम सुंदर भगवान श्री कृष्ण एवं वृषभानु सुता श्री राधा जी के दिव्य, नित्य रासमंडल में प्रवेश एवं महारास का दर्शन। श्री नरसी जी ने देखा कि स्वर्णमय रासमंडल, रंग बिरंगे हीरों से जड़ा हुआ है। व्रजगोपियों के मध्य प्रिया-प्रियतम दोनों विचित्र गतियों से नृत्य कर रहे हैं। गान-तान की अद्भुत ध्वनि छाई हुई है। श्री राधा-श्यामसुंदर गौर-श्याम चंद्र के रूप की चांदनी की समानता चंद्रमा और उसकी चंद्रिका से नहीं की जा सकती है। लाल जी ताली बजाकर ताल लगा रहे हैं और नृत्य एवं राग की सुंदर गति ले रहे हैं। ग्रीवा (गर्दन) का झुकना और हिलना, अंगुलियों को मोड़कर मुद्रायें बनाना अत्यंत मनमोहक था। श्री मुख से निकलता हुआ गायन का मधुर स्वर सुनकर कानों की तृप्ति होती थी और पुनः श्रवण करने की आशा-अभिलाषा से ताप होता था। मृदंग और मुखचंग आदि वाजे गायन के साथ-साथ बज रहे थे। नृत्य करते हुये प्रिया प्रियतम के प्रत्येक अंग में शोभा की जो लहरें उठ रही थी वे मानों परिकर प्रेमियों को नवीन प्रेम जीवन प्रदान कर रही थी।
सत्संग के अमृतबिंदु मनका वश में होना- ईश्वर प्रणिधान से भी मन बस में होता है। अनन्य भक्ति से परमात्मा के शरण होना प्रणिधान कहलाता है। ईश्वर शब्द से यहां पर परमात्मा और उनके भक्त दोनों ही समझे जा सकते हैं। श्रुति और भक्ति शास्त्र के सिद्धांत वचनों में भगवान, ज्ञानी और भक्तों की एकता सिद्ध होती है। श्रीभगवान और उनके भक्तों के प्रभाव और चरित्र के चिंतन मात्र से चित्त आनंद से भर जाता है। संसार का बंधन मानो अपने आप टूटने लगता है। अतएव भक्तों का संग करने, उनके उपदेशों के अनुसार चलने और भक्तों की कृपा को ही भगवत प्राप्ति का प्रधान उपाय समझने से भी मन पर विजय प्राप्त की जा सकती है। भगवान और सच्चे भक्तों की कृपा से सब कुछ हो सकता है। परम पूज्य संत श्री घनश्याम दास जी महाराज ने बताया कि-कल की कथा में श्री नरसी जी की हुण्डी की कथा का गान किया जायेगा। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना। श्री दिव्य घनश्याम धाम,
श्री गोवर्धन धाम कालोनी, दानघाटी,बड़ी परिक्रमा मार्ग, गोवर्धन,जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)।