कर्तव्य, कर्म एवं उपासना से जीवन बनता है महान: दिव्य मोरारी बापू

राजस्थान/पुष्कर। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी ने कहा कि कर्तव्य कर्म एवं उपासना से जीवन बनता है महान। अपना अपना कर्तव्य-कर्म हमारा आपका स्वधर्म है। कर्तव्य पालन रूप धर्म के तीन अंग है। 1- कर्तव्य निष्ठा, 2- प्रमाणिकता, 3-परोपकार, उदाहरण के लिए मानो आप व्यापारी हैं, व्यापार करना आपका कर्तव्य है। व्यापार करके आप कर्तव्यनिष्ठ तो हो गये, परंतु व्यापार प्रामाणिकता से करें यह दूसरी शर्त है। आप कर्तव्यनिष्ठ हैं और प्रमाणिकता भी है, अब उस व्यापार से जो भी धन कमायें उसमें से कुछ परोपकार में लगायें, यह व्यवहार धर्म की पूर्णता है। हम लोग धर्म का मतलब केवल ध्यान-जप, पाठ-पूजा, कथा- कीर्तन, मठ-मंदिर इत्यादि से ही लगाते हैं। यह सब उपासना के प्रकार और स्थान है। सबकी उपासना अपनी-अपनी आस्था और श्रद्धा पर निर्भर है, जबकि व्यवहार धर्म तो सबके लिये अनिवार्य है। बिना धर्ममय जीवन के उपासना का कोई फल नहीं मिलने वाला है। कहना होगा तो कहा जा सकता है कि धर्म खेत और उपासना बीज है। पैदावार के लिए खेत और बीज दोनों चाहिये। कितना ही उन्नत किस्म का बीज क्यों न हो यदि खेत ऊसर है तो वह बीज और श्रम दोनों निष्फल जायेंगे। आपकी उपासना कितनी भी ऊंची क्यों न हो, लेकिन यदि धर्म नहीं है, तो सब निष्फल होगा। हम कितना ही क्यों न माला फिरते हों परंतु हमारे जीवन में सत्य, परोपकार, दया, करुणा आदि नहीं है, तो उसर में बोये हुए बीज के समान सब बेकार है। हां, धर्म (खेत) उत्तम और उपासना बीज उन्नत है तो फल भी अच्छा मिलेगा। अतः मानव धर्म को अच्छी तरह समझ कर जीवन जीना होगा। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं नवनिर्माणाधीन गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना-श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)।

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