पुष्कर/राजस्थान। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, श्रीनारदजी भगवान् का दर्शन करने के लिए द्वारिका अक्सर आते रहते थे। वसुदेव जी ने नारद मुनि से पूछा कि भगवन् ! मनुष्य कर्म करता है सुख पाने के लिये, लेकिन मिलते दुःख ही हैं। कर्मों से आज तक किसी को पूर्ण सुख नहीं मिला और आप जैसे ऋषियों का दर्शन दुःख के नाश के लिये और सुख की प्राप्ति के लिये हुआ करता है। हम आपसे भागवत धर्म के बारे में जानना चाहते हैं। वैष्णव धर्म क्या है? तब नारद जी ने जवाब दिया कि जो प्रश्न आपने हमसे किया है, वही प्रश्न एक बार विदेह राज जनक ने नव योगेश्वरों से किया था। ऋषभदेव भगवान् के सौ पुत्र थे। उनमें से नौ पुत्र योगी हो गये। कवि, हरि, अंतरिक्ष, प्रबुद्ध, पिप्पलायन,आविर्होत्र, दुर्मिल, चमस और करभाजन। इन नौ ॠषियों की कुंडलनी जागृत है। ये आकाश मार्ग से चलते हैं। एक बार यह विदेह राज महात्मा निमी के यज्ञ में चले गये। यज्ञ चल रहा हो, कोई संत आ जाये तो मन बड़ा प्रसन्न हो जाता है। महाराज निमि बहुत प्रसन्न हुए, उन्होंने यथा योग्य स्वागत सत्कार किया और उनकी पूजा की,वे नवो योगेश्वर अपने अंगों की कांति से इस प्रकार चमक रहे थे मानो साक्षात ब्रह्मा जी के पुत्र सनकादि मुनीश्वर ही हों। राज निमि ने विनय से झूमकर परम प्रेम के साथ उनसे प्रश्न किया भागवत में इसे नवयोगेश्वर संवाद के नाम से जानते हैं। प्रभु मनुष्य का शरीर बहुत ही दुर्लभ है।सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना। श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कालोनी, दानघाटी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)