काम और लोभ की आग में जल रहा है संसार: दिव्य मोरारी बापू

पुष्कर/राजस्थान। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि श्रीमद्भागवत महापुराण में पहले दत्तात्रेय जी के चौबीस गुरु बताये। यदु जी महाराज वन में श्री दत्तात्रेय भगवान् का दर्शन किये। श्री दत्तात्रेय भगवान् जमीन पर लेटे हुए थे। उनके पास कोई सामग्री नहीं थी लेकिन उनके चेहरे पर चमक थी, प्रसन्नता थी और उनके कंठ में जैसे अमृत घुला हुआ था। उनकी आवाज में एक अनोखी मिठास थी। शरीर में भी चमक थी। यदु जी के मन में जिज्ञासा हुई कि मेरे पास राज-पाट, धन-दौलत, खजाना, पत्नी, पुत्र, सिपाही, सब कुछ है पर सदा तनावग्रस्त रहता हूं और महात्मा के पास कुछ भी नजर नहीं आ रहा, लेकिन फिर भी वह कितने प्रसन्न हैं? संसार के प्राणी दो अग्नियों में सदा जलते रहते हैं। जनेषु दह्यमानेषु कामलोभदवाग्निना। यह दो आग बहुत खतरनाक है- एक तो काम की आग, दूसरे लोभ की आग, अधिक संपत्ति पाने की लिप्सा। यह भी एक ऐसी आग है जो हर समय व्यक्ति को जलाती रहती है। संसार काम और लोभ की आग में जल रहा है और महाराज आप ऐसी आराम से पड़े हो जैसे गर्मी के दिनों में श्री गंगा जी की धारा में कोई हाथी पड़ा हो। हरिद्वार में गंगा जी की शीतल धारा में कोई मस्त हाथी पड़ा हो। हम जानना चाहते हैं कि हमारे पास सब कुछ है फिर भी हम तनावग्रस्त हैं। आपके पास कुछ नहीं है, लेकिन आप तनावमुक्त हैं। इसका कारण क्या है? श्री दत्तात्रेय भगवान ने कहा – गुरुओं से प्राप्त ज्ञान और विवेक ही हमारी पूंजी है। जिसके पास ज्ञान और विवेक की पूंजी है, वह व्यक्ति सदा सुखी है। जिसके पास ज्ञान और विवेक नहीं है। वह सारे संसार का राजा बनकर भी तनाव मुक्त नहीं हो सकता। वह व्यक्ति सदैव तनाव में रहेगा, सदा जलता रहेगा। दत्तात्रेय भगवान ने कहा, मैंने जीवन में चौबीस गुरु स्वीकार किये। गुरु बनाने का मतलब यह नहीं कि सबसे मंत्र लेते रहे। जिनसे हमें भजन की प्रेरणा मिले, जिनसे हमें कुछ शिक्षा प्राप्त हो, उन्हें गुरु के रूप में स्वीकार करो। दत्तात्रेय भगवान कहते हैं- जिनसे हमें भजन की प्रेरणा मिले, जिनके सानिध्य में आने के बाद हमारा मन ईश्वर की ओर बढ़ने लगे, उनके प्रति गुरु भाव मन में बना लेना, लाभदायक है। मैंने पृथ्वी को गुरु बना लिया क्योंकि वह क्षमाशील है। हम नाना प्रकार का उपद्रव धरती पर करते हैं, चलते हैं, दौड़ते हैं, उधम मचाते हैं लेकिन धरती माता है टस से मस नहीं होती। ईश्वर की ओर चलने वालों के जीवन में क्षमा होनी चाहिये। छोटी-छोटी बातों में जो उबल पड़ते हैं, वह साधना नहीं कर सकते। भजन करने वाला व्यक्ति न धीरज खोये न क्रोध करे। जल से मधुरता की शिक्षा ली। जैसे जल स्वच्छ, मधुर और पवित्र करने वाला होता है वैसे ही जल से शिक्षा प्राप्त करने वाला अपने दर्शन, स्पर्श और नामोच्चारण से लोगों को पवित्र कर देता है। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना। श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कालोनी, दानघाटी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)।

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