चंचल मन को वश में करना नहीं है असंभव: दिव्य मोरारी बापू

पुष्कर/राजस्थान। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा की अर्जुन ने कहा प्रभु! मन बड़ा चंचल है, इसको बस में करना बहुत कठिन है। मन बहुत बलवान है, बहुत चंचल है, यह बस में नहीं हो सकता। यह जीवन को मथ देता है, यह दृढ़ संकल्प वाला है, जैसे वायु को पकड़कर एक जगह रख लेना कठिन है उसी प्रकार मन को पकड़कर एक जगह बिठा देना असंभव है। भगवान कृष्ण उसका समाधान करते हैं। जब कोई व्यक्ति गलत बात भी कह रहा हो तो एकदम उसे मत डांटो। यह अशिष्ट भाषा है। कोई गलत भी बोल रहा हो तो एक बार तो कह दे कि ठीक है, लेकिन ऐसा ज्यादा ठीक है। जैसा तुम कह रहे हो ठीक है लेकिन यदि ऐसा हो जाये तो बहुत बढ़िया है। बड़ों की भाषा इस तरह की होती है। तुम गलत बोलते हो, तुम झूठ बोलते हो, यह बड़ों की भाषा नहीं होनी चाहिये। अर्जुन ने कह दिया कि- मन को वश में करना कठिन है तो भगवान ने उसे डांटा नहीं बल्कि पूछा, ‘क्यों नहीं हो सकता? क्या समस्या है? और कहा कि इसमें कोई संदेह नहीं कि इस चंचल मन को वश में करना बहुत कठिन है लेकिन असंभव नहीं है, यदि उपाय किया जाये तो बस में हो सकता है। जिन व्यक्तियों ने संयम से काम लिया, उनका मन बस में हो गया, जो संयम से काम नहीं ले पाये उनका मन बस में नहीं हुआ। कौन-सा उपाय किया जाये कि यह चंचल मन बस में हो जाये। भगवान् ने कहा, दो सूत्र ले जाओ, तुम्हारा मन स्थिर हो जायेगा। दो सूत्र- एक तो उसे पकड़ कर एक जगह बिठाने की आदत बनाओ, ध्यान करने बैठे, मन इधर-उधर जाये तो उसे पकड़ कर बिठाओ, प्रतिदिन ऐसा करो— लेकिन उसके साथ एक चीज और होनी चाहिये, बैराग्य- विषयों से बैराग्य हो जाये। मन जाता कहां है, जिसके प्रति राग है,कभी किसी शुद्ध वैष्णव का मन गलत खानपान में नहीं जायेगा क्योंकि उसके प्रति उसके मन में कोई राग नहीं है। मन वहीं जाता है जिसके प्रति राग होता है, जो आप चाहते हो या द्वेष होता है। भगवान् कहते हैं यदि तुम जीवन में वैराग्य को धारण कर लो, किसी वस्तु के साथ लगाव नहीं रखो, फिर अपने मन को बिठाने की कोशिश करो, तो मन एकदम बस में आ जायेगा।श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कालोनी, दानघाटी,बड़ी परिक्रमा मार्ग, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)।

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