राजस्थान/पुष्कर। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने बताया कि भगवान् शिव जी का पूजन कैसे करना चाहिए? उन्होंने कहा कि शिवमहापुराण में उस पर विचार किया गया है। मूर्ति पूजन के कई भेद हैं- पंचोपचार,षोड़शोपचार,चतुष्ट-उपचार और महा-उपचार। भगवान् की पूजा एक बहुत बड़ी साधना है। पूजा में दो शब्द हैं’,पू और जा। पू शब्द का अर्थ है ऐश्वर्य, लक्ष्मी, सुख संपत्ति और जा का अर्थ है प्राप्ति। जिसके द्वारा ऐश्वर्य सुख और संपत्ति का जन्म हो,प्राप्ति हो और ईश्वर तत्व का बोध हो,उसे कहते हैं पूजा। अपने घर में पूजन जरूर करना चाहिए। यदि घर के पास कोई मंदिर है, वहां जाकर भगवान् का दर्शन करो, पूजन करो, पूजा अनादि काल से चली आ रही है। भगवान् शंकर की पूजा या किसी भी देवता की पूजा पंचोपचार से करना चाहिए। कम से कम पांच चीजें समर्पित करनी चाहिए- गंध,पुष्प,धूप,दीप और नैवेद्य। यदि शिवलिंग के पास पहुंच गये,तब जलधारा चढ़ाओ। जलधारा प्रियः शिवः। शिव को जल की धारा बहुत प्रिय है। शिव के पूजन में जल की प्रधानता है,इसीलिए शिव पूजन मे जल जरूर चढ़ाएं।
भगवान विष्णु, राम, कृष्ण के पूजन में जल नहीं चढ़ाते। जो सोलह श्रृंगार किए खड़ा हो और उनके ऊपर आप जल चढ़ाने लगो,तब समस्या खड़ी नहीं हो जायेगी। शिव शंकर की पूजा में आप जल चढ़ाने के लिए आते जाओ और एक लोटा जल चढ़ाते जाओ और जलधारा से शिव प्रसन्न हो जाते हैं। यदि अखंड जलधारा आप चढ़ाने लग जाओ फिर मौज ही मौज है। एक तिपाई लेकर उस पर छिद्र वाला घट रख दीजिए, सारा दिन एक-एक बिंदु शंकर पर गिरता रहे। भगवान शंकर पर जो जल की धारा गिरती है, उससे जितना शीतल शिव होते जाएंगे,आपके हृदय को भी उतनी शीतलता प्राप्त होती जाएगी। वैसी ही शीतलता होती जाएगी क्योंकि जिस पर आप जल चढ़ा रहे हैं, उसका अंश आपके भीतर आत्मा के रूप में विद्यमान है। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना। श्री दिव्य घनश्याम धाम,श्री गोवर्धन धाम कालोनी,दानघाटी,बड़ी परिक्रमा मार्ग,गोवर्धन,जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)