जम्मू-कश्मीर। कश्मीर के इतिहास में अहम भूमिका रखने वाली झेलम नदी का जन्म दिन (व्येथ तरुवाह) मनाया गया। बताया जाता है कि कश्मीरी पुराणों के अनुसार व्येथ तरुवाह के दिन झेलम नदी घाटी में उत्पन्न हुई थी। श्रीनगर के डाउन टाउन के हब्बा कदल इलाके में पुर्शियार घाट पर विशेष पूजा अर्चना कर दीये भी जलाए गए। इसमें बड़ी संख्या में कश्मीरी पंडित समुदाय के लोग शामिल हुए। कश्मीर के कमिश्नर पीके पोल और अन्य अधिकारी भी मौजूद रहे। कई वर्षों बाद भाग लेकर कश्मीरी पंडित समुदाय के लोग काफी उत्साहित दिखे। कई लोगों ने झेलम नदी की मौजूदा हालत पर अफसोस भी व्यक्त किया। मीना हंडू ने बताया कि वह इसी हब्बा कदल इलाके में रहा करती थी और शुरू से ही हम इस मां झेलम का बहुत आदर सत्कार करते थे। हम इस नदी को हिमालय से निकली अपनी मां समझते हैं। आज यहां इस नदी को प्रदूषित देख काफी दुख हुआ क्योंकि इस नदी के पानी को हम काफी पवित्र मानते थे। मीना ने बताया कि शिवरात्रि के दिन भी यही से पानी का घड़ा भरके ले जाय करते थे और मंदिरों में भी इसी नदी का पानी इस्तेमाल में लाया जाता था। लोग इसी का पानी पीते थे पर आज इतने सालों बाद यह देख के दुख हुआ। उन्होंने बताया कि आज के दिन को हम वितस्ता माता (झेलम नदी) का जन्म दिन मनाते थे और हर कोई पंडित यहाँ आके दिया जलाता था। और अपने तौर पर पुछा अर्चना अपने अपने नदी के घाट पर की जाती थी। आज एक बार हमने सोचा कि कई वर्षों बाद एक बार फिर से वितस्ता माता का जन्म दिन उसी तरह से मनाएं जैसे पहले मनाया करते थे। काफी ख़ुशी हुई यह देख कर। गौरतलब है कि इस अवसर पर कश्मीर के डिव कॉम पी के पोल ने कहा कि हर एक मुल्क के हर खित्ते की तरक्की में प्राकृतिक संसाधनों अहमियत रहती है जिसमें वहां की मिट्टी, आबोहवा और पानी शामिल हैं। पानी दरिया लेकर आते हैं। उन्होंने कहा कि हम सब जानते हैं कि इंडस सिविलाईजेशन इसी सिंधु नदी के किनारे बैठी थी। जेहलम नदी की कश्मीर की अर्थव्यवस्था में काफी हम भूमिका रही है। उन्होंने कहा कि यहाँ का एग्रीकल्चर, हॉर्टिकल्चर और अन्य इंडस्ट्रीज इसी पर निर्भर है। करीब 75 लाख की आबादी इस नदी व् इसकी सहायक नदियों से पानी लेती हैं। आज का उत्सव जो है जो उसका मकसद यह है कि हमें अपने प्राकृतिक संसाधनों एहमियत जाननी चाहिए और इसके प्रति अपनी श्रद्धा बनाए रखें। साथ ही उसको किस तरह साफ सुथरा रखें उस पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए।