दुनियां के सारे यज्ञ-दान, पूजा-पाठ से श्रेष्ठ है श्रीमद्भागवत की कथा: दिव्य मोरारी बापू

पुष्कर/राजस्थान। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, श्रीगंगाजी के तट पर महाराज परीक्षित को श्री शुकदेव भगवान् कथा सुनाने बैठे तो देवता आ गये वहां। उनके हाथ में अमृत का कलश था। उन्होंने श्रीशुकदेव भगवान् को प्रणाम किया। श्रीशुकदेव भगवान् ने पूछा- कैसे पधारे आप लोग? महाराज हमने सुना है कि राजा परीक्षित को तक्षक काटने का श्राप मिला है। तक्षक काटेगा तो ये समाप्त हो जायेंगे, हम इनको बचाने आये हैं। कैसे बचाओगे ? श्रीशुकदेव जी ने पूछा। ये अमृत पिला दीजिये, हजार सर्प काटेंगे तो भी इनकी मृत्यु नहीं होगी। बहुत अच्छी बात है। श्री शुकदेव जी ने पूछा- अच्छा ठीक है, ये अमृत परीक्षित को पिला देंगे, इसके बदले में आप लोग क्या चाहते हो? देवताओं ने कहा- हमको यजमान बनाकर भागवत की कथा श्री गंगा जी के किनारे सुना दो। श्री शुकदेव भगवान् ने कहा- अपना अमृत वापस ले जाओ। अमृत है कांच का टुकड़ा और भागवत की कथा है पारस मणि। जैसे कांच के टुकड़े के बदले में मणि नहीं दी जा सकती, इसी तरह अमृत के बदले में कथा नहीं सुनाई जा सकती। कथा तो साधकों के लिये है। परीक्षित भय के कारण एकदम एकाग्र हो चुके हैं, अब कथा का असर ज्यादा होगा। कथा पूर्ण हुई, महाराज परीक्षित का शरीर छूटा और वो सीधे बैकुंठ जा रहे थे और देवता पुष्प वर्षा कर जय-जयकार कर रहे थे। श्रीब्रह्माजी ने देवताओं से पूछा कि ये शोर कैसा हो रहा है? महाराज परीक्षित बैकुंठ जा रहे हैं। बैकुंठ जाने के लिये तो बहुत तप करना पड़ता है। अनेक जन्म संसिद्धि, जनम-जनम मुनि जतन कराहीं। कौन सा साधन किया? ऋषियों ने कहा भगवन् इन्होंने एक सप्ताह भागवत की कथा सुना। बस ! सप्ताह भागवत सुनने से बैकुंठ जा रहे हैं? ब्रह्मा जी को विश्वास नहीं हुआ भागवत के आधार पर। ऋषियों के कहने पर भी। ब्रह्मा जी ने तराजू बुलवाई, एक पलड़े पर दुनियां के सारे  यज्ञ-दान, पूजा-पाठ का फल रख दिया और दूसरे पलड़े पर भागवत सप्ताह का पुण्य रखकर जब तराजू उठाया तो- भागवत के पुण्य का पलड़ा नीचे था। साधनों का पलड़ा ऊपर हो गया। जो वजनदार होता है, वो नीचे रहेगा। इसका मतलब कि दुनियां के सारे यज्ञ-दान, पूजा-पाठ से श्रेष्ठ है, श्रीमद्भागवत की कथा। ब्रह्मा जी ने भी हाथ जोड़कर प्रणाम किया है। श्रीमद्भागवत पुस्तक नहीं है।
यह तो साक्षात् आनंदकंद, परमानंद भगवान् श्री कृष्ण चंद्र का वाङ्गमय विग्रह है, शरीर है। श्रीमद्भागवत का दर्शन करना, सिर पर उठाकर लेकर चलना, भागवत की कथा सुनना,भागवत को प्रणाम करना, जीवन के सारे दुःखों को मिटाने के समान है और अगर कथा श्रवण और भजन नहीं किया तो पछताना पड़ेगा। मन पछितई हैं अवसर बीते। सुर दुर्लभ तनु पाय हरी पद, कमल वचन अरु हीते। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना- श्री दिव्य घनश्याम धाम,  श्री गोवर्धन धाम कालोनी, दानघाटी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, गोवर्धन, जिला-मथुरा,
(उत्तर-प्रदेश)  श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *