दूसरों को दुःखी करके कभी भी कोई नहीं हो सकता सुखी: दिव्य मोरारी बापू

राजस्थान/पुष्कर। इस संसार में सभी का अनुभव यही है कि लोग गुणों का पूजन करते हैं, गुणों की प्रशंसा करते हैं, चाहे वह गुण, रूप हो, ज्ञान हो, शक्ति या सामर्थ्य हो, सत्ता या संपत्ति हो, कोई अच्छा स्वभाव देखकर स्नेह करता है और कोई अपने पर उपकार करने वालों से स्नेह करता है। याद रखिये, आत्मा स्वरूप से शुद्ध है। इसलिये हर व्यक्ति वास्तव में अच्छाई की चाहत से भरा है। अपने लिये सब कोई सत्य ही चाहता है। झूठ बोलने वाला भी यही चाहता है कि उससे कोई झूठ न कहे। चोरी करने वाला खुद के यहां चोरी हो, ऐसा कभी नहीं चाहेगा। हिंसा करने वाला यह नहीं चाहेगा कि उसे कोई मारे। दूसरों का अपमान करने वाला भी खुद के लिये सम्मान की आकांक्षा रखता है।इसलिये आप दूसरों से जिस तरह के व्यवहार की अपेक्षा रखते हैं, वैसा ही व्यवहार आप सबके साथ कीजिये इसी का नाम धर्म है। आत्मनः प्रतिकूलानि परेषां न समाचरेत्। जो दूसरों को सुख दे, उसी को सुख मिलता है, दूसरों को दुःखी करके कभी भी कोई सुखी नहीं हो सकता। दूसरों को दुःख देकर सुख का अनुभव करने वाला राक्षस है। मूर्ख है। अंत में उसका नाश ही होता है। उसका अपने मन से माना हुआ सुख भी क्षणभंगुर होता है। सबका भला करने वाले का भी भला होता है। दूसरों के सुख हेतु परिश्रम करने वालों के कल्याण को कोई नहीं रोक सकता। परहित सरिस धर्म नहिं भाई। पर पीड़ा सम नहिं अघमाई।परहित बस जिन्ह के मन माहीं तिन्ह कहूं जग दुर्लभ कछु नहीं। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं नवनिर्माणाधीन गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना। श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)।

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