राजस्थान/पुष्कर। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि श्रीपद्ममहापुराण के उत्तरखण्ड में भक्तों के लिए कल्याणकारी निर्देश- वैष्णव भक्त विश्ववन्द्य भगवान् नारायण का पूजन करके उनके चारों ओर विराजमान देवताओं का पूजन करे। भगवान् को भोग लगाये हुए अन्न में से निकालकर उसी से उनके लिए वलि निवेदन करे। भगवत्प्रसाद से ही उनके निमित्त होम भी करे। देवताओं के लिए भी भगवत्प्रसाद स्वरूप हविष्य का ही हवन करे। पितरों को भी प्रसाद अर्पण करे। इससे वह सब फल प्राप्त करता है। प्राणियों को पीड़ा देना विद्वानों की दृष्टि में नरक का कारण है। मनुष्य दूसरों की वस्तु को जो बिना दिये ही ले लेता है, वह भी नरक का कारण है। दुराचार, दूसरों के धन का अपहरण, अभक्ष्य वस्तु का भक्षण करने से तत्काल नरक की प्राप्ति होती है। पतित, पाखण्डी और पापी मनुष्य के संसर्ग से मनुष्य अवश्य नरक में पड़ता है। उनसे संपर्क रखने वाले का भी संसर्ग छोड़ देना चाहिये। अपने वर्ण तथा आश्रम के अनुसार कर्म, ज्ञान और भक्ति आदि का साधन वैष्णव भक्तों का साधन माना गया है।
जो भगवान् की आज्ञा के अनुसार कर्म, ज्ञान आदि का अनुष्ठान करता है, वह वासुदेव परायण भक्त ‘एकान्ती’ कहलाता है। वैष्णव भक्त निषिद्ध कर्म को मन-बुद्धि से भी त्याग दे। ‘एकान्ती’ भक्त अपने धर्म की निन्दा करने वाले शास्त्र को मन से भी त्याग दे और परम ‘एकान्ती’ भक्त हेय बुद्धि से उसका परित्याग करे। कर्म तीन प्रकार का माना गया है- नित्य, नैमित्तिक और काम्य। इसी प्रकार मुनियों ने ज्ञान के भेदों का भी वर्णन किया है। कृत्याकृत्यविवेक-ज्ञान, परलोकचिंतन-ज्ञान, विष्णुप्राप्तिसाधन-ज्ञान तथा विष्णुस्वरूप-ज्ञान- ये चार प्रकार के ज्ञान है। नैमित्तिक कृत्य में भगवान् का विशेष रूप से विधिवत पूजन करना चाहिये। इंद्रियों को संयम में रखकर दृढ़ता पूर्वक उत्तम व्रत का पालन करे, इससे वह हरि के सायुज्य को प्राप्त होता है। छोटीकाशी बूंदी की पावन भूमि, श्री सुदामा सेवा संस्थान वृद्धाश्रम एवं वात्सल्यधाम का पावन स्थल, चातुर्मास का पावन अवसर, पूज्य महाराज श्री-श्री घनश्याम दास जी महाराज के पावन सानिध्य में श्रीपद्ममहापुराण के नवें दिवस उत्तरखण्ड की कथा का वर्णन किया गया।