नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि फैसला लिखना एक कला है और हर फैसला स्पष्ट, तार्किक व सटीक होना चाहिए। शीर्ष अदालत ने कहा कि भले ही जज लंबित मुकदमों के बोझ तले दबे हों, लेकिन गुणवत्ता के साथ समझौता नहीं किया जा सकता। जस्टिस डीवाई चंद्रचूड और जस्टिस एमआर शाह की पीठ ने अपने फैसले में कहा कि न्यायिक राय इस तरह से लिखी जानी चाहिए कि वह आश्वस्त करने वाले तरीके से स्पष्ट हो और इस तथ्य को साबित करे कि निर्णय पूरी तरह सच्चा व न्याय संगत है। पीठ ने कहा कि कोई भी फैसला, जज के व्यक्तित्व को परिलक्षित करता है। इसलिए यह अनिवार्य है कि हर फैसला सतर्कता के साथ लिखा जाना चाहिए। निर्णय में तर्क बौद्धिक और तार्किक होना चाहिए। स्पष्टता और सटीकता का लक्ष्य होना चाहिए। सभी निष्कर्षों को तर्क द्वारा समझाया जाना चाहिए। कारणों को विधिवत दर्ज किया जाना चाहिए। निष्कर्ष और निर्देश सटीक व विशिष्ट होने चाहिए। जस्टिस शाह द्वारा लिखे गए फैसले में पीठ ने कहा कि फैसला लिखना एक कला है, हालांकि इसमें कुशलता और कानून व तर्क के अमल का इस्तेमाल भी शामिल है। हम इस तथ्य से अवगत हैं कि जज पर लंबित मामलों का बोझ हो सकता है, लेकिन संख्या के लिए गुणवत्ता की अनदेखी कभी नहीं की जा सकती है। पीठ ने कहा कि जब तक निर्णय सटीक न हो, तब तक उसका व्यापक प्रभाव नहीं होगा। स्पष्टता न होने के कारण कुछ निर्णय दरकिनार कर दिए जाते हैं। इसलिए जब भी कोई फैसला लिखा जाए तो उसमें तथ्यों को लेकर स्पष्टता होनी चाहिए। उसमें प्रतिवादियों की दलीलें, कानूनी बिंदुओं पर विचार-विमर्श, उसके बाद तर्क और फिर अंतिम निष्कर्ष और इसके बाद आदेश का ऑपरेटिव पार्ट होना चाहिए। इसके अलावा अंतिम रूप से मिली राहत भी स्पष्ट समझ आनी चाहिए। मुकदमे के पक्षकारों को पता होना चाहिए कि अंतिम राहत के रूप में उन्हें वास्तव में क्या मिला है। पीठ ने कहा, निर्णय लिखते समय इन पहलुओं को ध्यान में रखा जाना चाहिए, जिससे अपीलीय अदालत का बोझ कम होगा। हमारे पास ऐसे कई निर्णय आते हैं जिनमें तथ्यों, तर्कों और पर स्पष्टता का अभाव होता है। इसलिए कभी-कभी मामलों को नए सिरे से विचार के लिए भेजने की आवश्यकता पड़ती है। ऐसे में आवश्यकता इस बात है कि निर्णय में तथ्य और कानून के अलावा दलीलों, निष्कर्ष, तर्क और अंतिम राहत में स्पष्टता होनी चाहिए।