पुष्कर/राजस्थान। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि ध्यानावस्था में होने वाली अनुभूतियां साधन पथ पर आगे बढ़ने पर ध्यान किया जाता है। शिवपुराण में ध्यानयोग का बड़ा सुंदर वर्णन है और बताया गया है कि प्रकृति में चौबीस तत्व हैं और पचीसवां तत्व शुद्ध चेतन ब्रह्म है। इस शरीर के अंदर जो चेतन तत्व है, वह शिव ही हैं। शिव ही जीव बनकर लीला करते हैं। चौबीस तत्वों से चेतन को अलग करना है, दस इंद्रियां, पंचप्राण, पंचमहाभूत- मन,बुद्धि चित्त और अहंकार, यह मिलकर चौबीस तत्व हो गये। यह प्रकृति के धर्म हैं। शरीर में चौबीस तत्व प्रकृति के हैं और पचीसावां तत्व शुद्ध ब्रह्म है। जीव ब्रह्म का अंश है, इस तत्व को समझकर ध्यान में जाओ, ध्यान में नव प्रकार के शब्द क्रमशः सुनाई देते हैं। यदि आपको एक भी शब्द सुनाई नहीं दिया, इसका अर्थ है कि- आपने जीवन यूं ही गवां दिया, कभी ध्यान नहीं किया। पहला शब्द है घोष- यदि यह आपको सुनाई देने लगे, तब समझ लो कि आपकी आत्मा शुद्ध हो गई। जब आपका हृदय शुद्ध होगा, तब आपको आत्म- घोष, अंदर से एक ध्वनि सुनाई देगी। जब आप और गहराई में जाओगे, फिर आपको मजीरे सुनाई पड़ेंगे। और आगे बढ़ने पर मृदंग, श्रृंगी बजने की जैसी आवाजें सुनाई देंगी।
इसके बाद घंटे की ध्वनि सुनाई पड़ती है। उससे भी गहरे ध्यान में जाने पर वीणा सुनाई देगी। वीणा के बाद आपको अंदर ही बांसुरी सुनाई देगी। उसके बाद दुंदुभि बजने की आवाज सुनाई देगी। आठवीं कोटि में आपको शंख ध्वनि सुनाई देगी।अंतिम कोटि में बादलों की गड़गड़ाहट- मेघ गर्जन सुनाई देगा, बड़ी तेज आवाज सुनाई देगी। मेघ गर्जन के बाद बिजली चमकती है। अंधेरे मन में प्रकाश हो जाता है। जब मेघ गर्जन होगा, तब बिजली जरूर चमकेगी और यदि बिजली चमकेगी, तब परमात्मा का साक्षात्कार हो जाएगा। इसकी विस्तृत व्याख्या शिवपुराण में दी हुई है। यह सिद्धि योग है। प्रथम प्राणायाम सीखना चाहिए। अंधेरे में बैठकर भृकुटी के मध्य अग्नि का ध्यान करो। जीभ को बढ़ाकर मोड़कर गले की घंटी को छुओ। अभ्यास करने से कुछ भी असंभव नहीं है। जिनके पास कोई काम नहीं है, उन्हें अभ्यास करना चाहिए। श्रम-साधन है, परिवार के भरण-पोषण के लिए लोग कितनी कोशिश करते हैं, कितना दौड़ते हैं। तत्व को पाने के लिए भी कुछ करना चाहिए। कोई दो-चार प्रक्रिया, कुछ तो दिमाग में लाओ, लगातार कुछ करो, सिद्धि मिल जाएगी। यदि ठीक ढंग से तीन महीने भी अभ्यास कर लिया जाए, तो जीभ घंटी को छूने लगती है।
ध्यान दो प्रकार का होता है। सबीज और निर्बीज। ईष्ट का चिंतन करते हुए प्राणायाम करना या ध्यान करना सबीज ध्यान कहलाता है। केवल निराकार ज्योति का ही ध्यान करना निर्बीज ध्यान कहलाता है। निर्बीज को सिद्ध करने के लिए पहले सबीज ध्यान करना चाहिए। पहले इष्ट की मूर्ति का ध्यान करते-करते जब मन स्थिर हो जाए, तब जाकर निर्बीज में स्वरूप स्थित हो जाता है। ‘तदा स्वरूपे प्रस्थानम्’ योगश्र्चित्तवृतिनिरोधः योग का फल है चित्तवृत्ति का निरोध और चित्तवृत्ति के निरोध का फल है, अपने स्वरूप में स्थित हो जाना। जो अपने स्वरूप में स्थित हो गया, उसने सब कुछ पा लिया। थोड़ा वैराग्य हो तो सिद्धि शीघ्र मिल जाती है। यह विश्वास लेकर चलो कि अंदर अनुपम खजाना भरा हुआ है। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना। श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कालोनी, दानघाटी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, गोवर्धन, जिला-मथुरा (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)।